इंद्रभूति: Difference between revisions
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<p class="HindiText">पूर्व भव में आदित्य विमान में देव थे। | <p class="HindiText">पूर्व भव में आदित्य विमान में देव थे। <span class="GRef">(महापुराण सर्ग संख्या 74/357)</span> यह गौतम गोत्रीय ब्राह्मण थे। वेदपाठी थे। भगवान् वीर के समवशरण में मानस्तंभ देखकर मानभंग हो गया और 500 शिष्यों के साथ दीक्षा धारण कर ली। तभी सात ऋद्धियाँ प्राप्त हो गयीं ( महापुराण सर्ग संख्या 74/366-370)। भगवान् महावीर के प्रथम गणधर थे। <span class="GRef">(महापुराण सर्ग संख्या 74/356-372)</span>। आपको श्रावण कृष्ण 1 के पूर्वांह्ण काल में श्रुतज्ञान जागृत हुआ था। उसी तिथि को पूर्व रात्रि में आपने अंगो की रचना करके सारे श्रुत को आगम निबद्ध कर दिया। <span class="GRef">(महापुराण सर्ग संख्या 74/369-372)</span>। कार्तिक कृष्ण 15 को आपको केवलज्ञान प्रगट हुआ और विपुलाचल पर आपने निर्वाण प्राप्त किया।</p> | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) मगधदेश के अचलग्रामवासी घरणीजट ब्राह्मण और उसकी पत्नी अग्निला का पुत्र, अग्निभूति का सहोदर । <span class="GRef"> महापुराण 62. 325-326 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) मगधदेश के अचलग्रामवासी घरणीजट ब्राह्मण और उसकी पत्नी अग्निला का पुत्र, अग्निभूति का सहोदर । <span class="GRef"> महापुराण 62. 325-326 </span></p> | ||
<p id="2">(2) गौतम गोत्रीय महाभिमानी वेदपाठी-ब्राह्मण । भगवान् महावीर के समवसरण में मानस्तंभ देखकर इनका मानभंग हो गया था । इन्होंने अपने पाँच सौ शिष्यों के साथ दीक्षा धारण की थी । तप करके इन्होंने सात ऋद्धियों प्राप्त की थी । महावीर के ये प्रथम गणधर हुए । श्रावण कृष्णा एकम के पूर्वाह्न में ये श्रुतज्ञानी हुए और उसी तिथि को पूर्व रात्रि में इन्होंने संपूर्ण स्वत को आगम के रूप में निबद्ध कर दिया था । इनका दूसरा नाम गौतम है । सुधर्माचार्य ने इनसे ही श्रुत प्राप्त किया था । इंद्र द्वारा पूजित होने से इनको यह नाम मिला था । अंत में विपुलाचल पर्वत पर इन्होंने मोक्ष पाया था । <span class="GRef"> महापुराण 2.53, 74.356-372, 76.507-517, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 1.41 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1.60, 3.41, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.159-160 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) गौतम गोत्रीय महाभिमानी वेदपाठी-ब्राह्मण । भगवान् महावीर के समवसरण में मानस्तंभ देखकर इनका मानभंग हो गया था । इन्होंने अपने पाँच सौ शिष्यों के साथ दीक्षा धारण की थी । तप करके इन्होंने सात ऋद्धियों प्राप्त की थी । महावीर के ये प्रथम गणधर हुए । श्रावण कृष्णा एकम के पूर्वाह्न में ये श्रुतज्ञानी हुए और उसी तिथि को पूर्व रात्रि में इन्होंने संपूर्ण स्वत को आगम के रूप में निबद्ध कर दिया था । इनका दूसरा नाम गौतम है । सुधर्माचार्य ने इनसे ही श्रुत प्राप्त किया था । इंद्र द्वारा पूजित होने से इनको यह नाम मिला था । अंत में विपुलाचल पर्वत पर इन्होंने मोक्ष पाया था । <span class="GRef"> महापुराण 2.53, 74.356-372, 76.507-517, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_1#41|पद्मपुराण - 1.41]] </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_1#60|हरिवंशपुराण - 1.60]], 3.41, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.159-160 </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
पूर्व भव में आदित्य विमान में देव थे। (महापुराण सर्ग संख्या 74/357) यह गौतम गोत्रीय ब्राह्मण थे। वेदपाठी थे। भगवान् वीर के समवशरण में मानस्तंभ देखकर मानभंग हो गया और 500 शिष्यों के साथ दीक्षा धारण कर ली। तभी सात ऋद्धियाँ प्राप्त हो गयीं ( महापुराण सर्ग संख्या 74/366-370)। भगवान् महावीर के प्रथम गणधर थे। (महापुराण सर्ग संख्या 74/356-372)। आपको श्रावण कृष्ण 1 के पूर्वांह्ण काल में श्रुतज्ञान जागृत हुआ था। उसी तिथि को पूर्व रात्रि में आपने अंगो की रचना करके सारे श्रुत को आगम निबद्ध कर दिया। (महापुराण सर्ग संख्या 74/369-372)। कार्तिक कृष्ण 15 को आपको केवलज्ञान प्रगट हुआ और विपुलाचल पर आपने निर्वाण प्राप्त किया।
( महापुराण सर्ग संख्या 66/515-516)।
पुराणकोष से
(1) मगधदेश के अचलग्रामवासी घरणीजट ब्राह्मण और उसकी पत्नी अग्निला का पुत्र, अग्निभूति का सहोदर । महापुराण 62. 325-326
(2) गौतम गोत्रीय महाभिमानी वेदपाठी-ब्राह्मण । भगवान् महावीर के समवसरण में मानस्तंभ देखकर इनका मानभंग हो गया था । इन्होंने अपने पाँच सौ शिष्यों के साथ दीक्षा धारण की थी । तप करके इन्होंने सात ऋद्धियों प्राप्त की थी । महावीर के ये प्रथम गणधर हुए । श्रावण कृष्णा एकम के पूर्वाह्न में ये श्रुतज्ञानी हुए और उसी तिथि को पूर्व रात्रि में इन्होंने संपूर्ण स्वत को आगम के रूप में निबद्ध कर दिया था । इनका दूसरा नाम गौतम है । सुधर्माचार्य ने इनसे ही श्रुत प्राप्त किया था । इंद्र द्वारा पूजित होने से इनको यह नाम मिला था । अंत में विपुलाचल पर्वत पर इन्होंने मोक्ष पाया था । महापुराण 2.53, 74.356-372, 76.507-517, पद्मपुराण - 1.41 हरिवंशपुराण - 1.60, 3.41, वीरवर्द्धमान चरित्र 18.159-160