महेंद्र: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25.148 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25.148 </span></p> | ||
<p id="2">(2) कुंडलगिरि का उत्तरदिशावर्ती एक कूट । यहाँँ पांडुक देव रहता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.694 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) कुंडलगिरि का उत्तरदिशावर्ती एक कूट । यहाँँ पांडुक देव रहता है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#694|हरिवंशपुराण - 5.694]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) विजया पर्वत का उत्तरश्रेणी का अड़तालीसवाँ नगर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 22.90 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) विजया पर्वत का उत्तरश्रेणी का अड़तालीसवाँ नगर । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_22#90|हरिवंशपुराण - 22.90]] </span></p> | ||
<p id="4">(4) राजा अचल का ज्येष्ठ पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 48.49 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) राजा अचल का ज्येष्ठ पुत्र । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_48#49|हरिवंशपुराण - 48.49]] </span></p> | ||
<p id="5">(5) भरतक्षेत्र के चंदनपुर नगर का राजा । इसकी रानी अनुंधरी तथा पुत्री कनकमाला थी । <span class="GRef"> महापुराण 71.405-406, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.80-81 </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) भरतक्षेत्र के चंदनपुर नगर का राजा । इसकी रानी अनुंधरी तथा पुत्री कनकमाला थी । <span class="GRef"> महापुराण 71.405-406, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#80|हरिवंशपुराण - 60.80-81]] </span></p> | ||
<p id="6">(6) एक पर्वत । चक्रवती भरत का सेनापति इस पर्वत को लांघकर विंध्याचल की ओर गया था । <span class="GRef"> महापुराण 29.88 </span></p> | <p id="6" class="HindiText">(6) एक पर्वत । चक्रवती भरत का सेनापति इस पर्वत को लांघकर विंध्याचल की ओर गया था । <span class="GRef"> महापुराण 29.88 </span></p> | ||
<p id="7">(7) एक मुनि । ये अयोध्या के राजा अरिंजय के दीक्षागुरू थे । <span class="GRef"> महापुराण 72.27-28 </span></p> | <p id="7" class="HindiText">(7) एक मुनि । ये अयोध्या के राजा अरिंजय के दीक्षागुरू थे । <span class="GRef"> महापुराण 72.27-28 </span></p> | ||
<p id="8">(8) एक विद्याधर । यह नगर बसाकर भरतक्षेत्र के दंती पर्वत पर रहने लगा था । इसके रहने से नगर का नाम महेंद्रगिरि हो गया था । इसकी हृदयवेगा रानी से इसके अरिंदम आदि सौ पुत्र तथा अंजना पुत्री हुई थी । इसने पुत्री का विवाह आदित्यपुर के राजा प्रह्लाद के पुत्र पवनंजय के साथ किया था । इसने सहायतार्थ रावण का पत्र आने पर और पवनंजय का विशेष आग्रह देखकर उसे रावण की सहायता के लिए भेजा था । पवनंजय की पत्नी को रानी केतुमती द्वारा दोष लगाकर घर से निकाल दिये जाने पर पत्नी के न मिलने से पवनंजय दु:खी होकर वन-वन भटका । पवनंजय को ढूंढ़ने यह भी घर से निकल गया था । वन में पवनंजय को देखकर यह बहुत प्रसन्न हुआ था और प्रिया को पाये बिना पवनंजय की भोजन न करने की प्रतिज्ञा सुनकर बहुत दु:खी भी हुआ था । अंत में अंजना और पवनंजय का मिलन हो जाने से यह और इसकी पत्नी दोनों हर्ष विभोर हो गये थे । <span class="GRef"> पद्मपुराण 15.11-16, 89-90, 16.79-81, 17.21, 18.72, 102-109, 127 </span></p> | <p id="8" class="HindiText">(8) एक विद्याधर । यह नगर बसाकर भरतक्षेत्र के दंती पर्वत पर रहने लगा था । इसके रहने से नगर का नाम महेंद्रगिरि हो गया था । इसकी हृदयवेगा रानी से इसके अरिंदम आदि सौ पुत्र तथा अंजना पुत्री हुई थी । इसने पुत्री का विवाह आदित्यपुर के राजा प्रह्लाद के पुत्र पवनंजय के साथ किया था । इसने सहायतार्थ रावण का पत्र आने पर और पवनंजय का विशेष आग्रह देखकर उसे रावण की सहायता के लिए भेजा था । पवनंजय की पत्नी को रानी केतुमती द्वारा दोष लगाकर घर से निकाल दिये जाने पर पत्नी के न मिलने से पवनंजय दु:खी होकर वन-वन भटका । पवनंजय को ढूंढ़ने यह भी घर से निकल गया था । वन में पवनंजय को देखकर यह बहुत प्रसन्न हुआ था और प्रिया को पाये बिना पवनंजय की भोजन न करने की प्रतिज्ञा सुनकर बहुत दु:खी भी हुआ था । अंत में अंजना और पवनंजय का मिलन हो जाने से यह और इसकी पत्नी दोनों हर्ष विभोर हो गये थे । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_15#11|पद्मपुराण - 15.11-16]],[[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_15#89|पद्मपुराण - 15.89-90]], 16.79-81, 17.21, 18.72, 102-109, 127 </span></p> | ||
<p id="9">(9) राम का पक्षधर एक विद्याधर राजा । <span class="GRef"> पद्मपुराण 58.3 </span></p> | <p id="9" class="HindiText">(9) राम का पक्षधर एक विद्याधर राजा । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_58#3|पद्मपुराण - 58.3]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:20, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
पद्मपुराण - 15.13-16 –महेंद्रगिरि का राजा तथा हनुमान् की माता अंजना का पिता था।
पुराणकोष से
(1) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25.148
(2) कुंडलगिरि का उत्तरदिशावर्ती एक कूट । यहाँँ पांडुक देव रहता है । हरिवंशपुराण - 5.694
(3) विजया पर्वत का उत्तरश्रेणी का अड़तालीसवाँ नगर । हरिवंशपुराण - 22.90
(4) राजा अचल का ज्येष्ठ पुत्र । हरिवंशपुराण - 48.49
(5) भरतक्षेत्र के चंदनपुर नगर का राजा । इसकी रानी अनुंधरी तथा पुत्री कनकमाला थी । महापुराण 71.405-406, हरिवंशपुराण - 60.80-81
(6) एक पर्वत । चक्रवती भरत का सेनापति इस पर्वत को लांघकर विंध्याचल की ओर गया था । महापुराण 29.88
(7) एक मुनि । ये अयोध्या के राजा अरिंजय के दीक्षागुरू थे । महापुराण 72.27-28
(8) एक विद्याधर । यह नगर बसाकर भरतक्षेत्र के दंती पर्वत पर रहने लगा था । इसके रहने से नगर का नाम महेंद्रगिरि हो गया था । इसकी हृदयवेगा रानी से इसके अरिंदम आदि सौ पुत्र तथा अंजना पुत्री हुई थी । इसने पुत्री का विवाह आदित्यपुर के राजा प्रह्लाद के पुत्र पवनंजय के साथ किया था । इसने सहायतार्थ रावण का पत्र आने पर और पवनंजय का विशेष आग्रह देखकर उसे रावण की सहायता के लिए भेजा था । पवनंजय की पत्नी को रानी केतुमती द्वारा दोष लगाकर घर से निकाल दिये जाने पर पत्नी के न मिलने से पवनंजय दु:खी होकर वन-वन भटका । पवनंजय को ढूंढ़ने यह भी घर से निकल गया था । वन में पवनंजय को देखकर यह बहुत प्रसन्न हुआ था और प्रिया को पाये बिना पवनंजय की भोजन न करने की प्रतिज्ञा सुनकर बहुत दु:खी भी हुआ था । अंत में अंजना और पवनंजय का मिलन हो जाने से यह और इसकी पत्नी दोनों हर्ष विभोर हो गये थे । पद्मपुराण - 15.11-16,पद्मपुराण - 15.89-90, 16.79-81, 17.21, 18.72, 102-109, 127
(9) राम का पक्षधर एक विद्याधर राजा । पद्मपुराण - 58.3