विद्याकर्म: Difference between revisions
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<p class="HindiText"> चित्र खेंचना या गणित आदि 72 कलाओं में निपुण विद्याकर्मार्य हैं। देखें [[ सावद्य#3 | सावद्य - 3]]।</p> | <p class="HindiText"> चित्र खेंचना या गणित आदि 72 कलाओं में निपुण ,विद्याकर्मार्य हैं। <br> | ||
देखें [[ सावद्य#3 | सावद्य - 3]]।</p> | |||
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<div class="HindiText"> <p> प्रजा की आजीविका के लिए वृषभदेव द्वारा उपदेशित छ: कर्मों में चौथा कर्म । शास्त्र लिखकर, रचकर अथवा अध्ययन-अध्यापन के द्वारा आजीविका प्राप्त करना विद्या-कर्म है । <span class="GRef"> महापुराण 16. 179 </span>?-181, <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 9.35 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> प्रजा की आजीविका के लिए वृषभदेव द्वारा उपदेशित छ: कर्मों में चौथा कर्म । शास्त्र लिखकर, रचकर अथवा अध्ययन-अध्यापन के द्वारा आजीविका प्राप्त करना विद्या-कर्म है । <span class="GRef"> महापुराण 16. 179 </span>?-181, <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_9#35|हरिवंशपुराण - 9.35]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
चित्र खेंचना या गणित आदि 72 कलाओं में निपुण ,विद्याकर्मार्य हैं।
देखें सावद्य - 3।
पुराणकोष से
प्रजा की आजीविका के लिए वृषभदेव द्वारा उपदेशित छ: कर्मों में चौथा कर्म । शास्त्र लिखकर, रचकर अथवा अध्ययन-अध्यापन के द्वारा आजीविका प्राप्त करना विद्या-कर्म है । महापुराण 16. 179 ?-181, हरिवंशपुराण - 9.35