उपभोग: Difference between revisions
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<span class="GRef"> रत्नकरण्ड श्रावकाचार/83</span> <span class="SanskritText">भुक्त्वा परिहातव्यो भोगो भुक्त्वा पुनश्च भोक्तव्य;। उपभोगोऽशनवसनप्रभृति: पंचेंद्रियो विषय:।</span> =<span class="HindiText">भोजन-वस्त्रादि पंचेंद्रिय संबंधी विषय जो भोग करके पुनः भोगने में न आवें वे तो भोग हैं और भोग करके फिर भोगने योग्य हों तो '''उपभोग''' हैं। | <span class="GRef"> रत्नकरण्ड श्रावकाचार/83</span> <span class="SanskritText">भुक्त्वा परिहातव्यो भोगो भुक्त्वा पुनश्च भोक्तव्य;। उपभोगोऽशनवसनप्रभृति: पंचेंद्रियो विषय:।</span> =<span class="HindiText">भोजन-वस्त्रादि पंचेंद्रिय संबंधी विषय जो भोग करके पुनः भोगने में न आवें वे तो भोग हैं और भोग करके फिर भोगने योग्य हों तो '''उपभोग''' हैं। <span class="GRef">( धवला 13/5,5,137/389/14 )</span>।</span><br /> | ||
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Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
रत्नकरण्ड श्रावकाचार/83 भुक्त्वा परिहातव्यो भोगो भुक्त्वा पुनश्च भोक्तव्य;। उपभोगोऽशनवसनप्रभृति: पंचेंद्रियो विषय:। =भोजन-वस्त्रादि पंचेंद्रिय संबंधी विषय जो भोग करके पुनः भोगने में न आवें वे तो भोग हैं और भोग करके फिर भोगने योग्य हों तो उपभोग हैं। ( धवला 13/5,5,137/389/14 )।
अधिक जानकारी के लिये देखें भोग ।
पुराणकोष से
गंध, माला, अन्न-पान आदि बार-बार भोगी जाने वाली वस्तुएँ । हरिवंशपुराण - 58.155