औषधि दान: Difference between revisions
From जैनकोष
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<span class="GRef"> रत्नकरंड श्रावकाचार/ मूल/117</span> <span class="SanskritText">आहारौषधयोरप्युपकरणावासयोश्च दानेन वैयावृत्यं ब्रुवते चतुरात्मत्वेन चतुरस्रा:।117।</span> =<span class="HindiText">चार ज्ञान के धारक गणधर आहार, '''औषध''' के तथा ज्ञान के साधन शास्त्रादिक उपकरण और स्थान के (वस्तिका के) '''दान''' से चार प्रकार का वैयावृत्य कहते हैं।117।</span> | <span class="GRef">[[ ग्रन्थ:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 117 | रत्नकरंड श्रावकाचार/ मूल/117]]</span> <span class="SanskritText">आहारौषधयोरप्युपकरणावासयोश्च दानेन वैयावृत्यं ब्रुवते चतुरात्मत्वेन चतुरस्रा:।117।</span> =<span class="HindiText">चार ज्ञान के धारक गणधर आहार, '''औषध''' के तथा ज्ञान के साधन शास्त्रादिक उपकरण और स्थान के (वस्तिका के) '''दान''' से चार प्रकार का वैयावृत्य कहते हैं।117।</span> | ||
<span class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ दान ]]।</span> | |||
Latest revision as of 08:37, 9 July 2023
रत्नकरंड श्रावकाचार/ मूल/117 आहारौषधयोरप्युपकरणावासयोश्च दानेन वैयावृत्यं ब्रुवते चतुरात्मत्वेन चतुरस्रा:।117। =चार ज्ञान के धारक गणधर आहार, औषध के तथा ज्ञान के साधन शास्त्रादिक उपकरण और स्थान के (वस्तिका के) दान से चार प्रकार का वैयावृत्य कहते हैं।117।
अधिक जानकारी के लिये देखें दान ।