आक्षेपिणी कथा: Difference between revisions
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<p span class="GRef"> भगवती आराधना व विजयोदयी टीका/556/853</span> <span class="SanskritText">आक्खेवणी कहा सा विज्जाचरणमुवदिस्सदे जत्थ।...।656। आक्षेपणी कथा भण्यते। यस्यां कथायां ज्ञानं चारित्रं चोपदिश्यते।</span>=<span class="HindiText">जिसमें मति आदि सम्यग्ज्ञानों का तथा सामायिकादि सम्यग्चारित्रों का निरूपण किया जाता है, वह '''आक्षेपणी कथा''' है।</p> | <p> <span class="GRef"> भगवती आराधना व विजयोदयी टीका/556/853</span> <span class="SanskritText">आक्खेवणी कहा सा विज्जाचरणमुवदिस्सदे जत्थ।...।656। आक्षेपणी कथा भण्यते। यस्यां कथायां ज्ञानं चारित्रं चोपदिश्यते।</span>=<span class="HindiText">जिसमें मति आदि सम्यग्ज्ञानों का तथा सामायिकादि सम्यग्चारित्रों का निरूपण किया जाता है, वह '''आक्षेपणी कथा''' है।</p> | ||
<p span class="GRef"> धवला 1/1,1,2/105/1 तथा श्लोक 75/106</span> <span class="PrakritText">तत्थ अक्खेवणीणाम छद्दव्वणवपयत्थाणं सरूवं दिगंतर-समयांतर-णिराकरणं सुद्धिं करेंती परूवेदि। उक्तं च-आक्षेपणीं तत्त्वविधानभूतां।...।75। </span>=<span class="HindiText">जो नाना प्रकार की एकांतदृष्टियों का और दूसरे समयों का निराकरणपूर्वक शुद्धि करके छह द्रव्य और नौ प्रकार के पदार्थों का प्ररूपण करती है, उसे '''आक्षेपणी कथा''' कहते हैं। ... कहा भी है – तत्त्वों का निरूपण करनेवाली आक्षेपणी कथा है।</p> | <p><span class="GRef"> धवला 1/1,1,2/105/1 तथा श्लोक 75/106</span> <span class="PrakritText">तत्थ अक्खेवणीणाम छद्दव्वणवपयत्थाणं सरूवं दिगंतर-समयांतर-णिराकरणं सुद्धिं करेंती परूवेदि। उक्तं च-आक्षेपणीं तत्त्वविधानभूतां।...।75। </span>=<span class="HindiText">जो नाना प्रकार की एकांतदृष्टियों का और दूसरे समयों का निराकरणपूर्वक शुद्धि करके छह द्रव्य और नौ प्रकार के पदार्थों का प्ररूपण करती है, उसे '''आक्षेपणी कथा''' कहते हैं। ... कहा भी है – तत्त्वों का निरूपण करनेवाली आक्षेपणी कथा है।</p> | ||
<p span class="GRef"> गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/357/765/19 </span><span class="SanskritText">तत्र प्रथमानुयोगकरणानुयोगचरणानुयोगद्रव्यानुयोगरूपपरमागमपदार्थानां तीर्थंकरादिवृत्तांतलोकसंस्थानदेशसकलयतिधर्मपंचास्तिकायादीनां परमताशंकारहितं कथनमाक्षेपणी कथा </span>=<span class="HindiText">तहाँ तीर्थंकरादि के वृत्तांतरूप प्रथमानुयोग, लोक का वर्णनरूप करणानुयोग, श्रावक मुनिधर्म का कथनरूप चरणानुयोग, पंचास्तिकायादिक का कथनरूप द्रव्यानुयोग, इनका कथन और परमत की शंका दूर की जाती है, वह '''आक्षेपणी कथा''' है।</p> | <p><span class="GRef"> गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/357/765/19 </span><span class="SanskritText">तत्र प्रथमानुयोगकरणानुयोगचरणानुयोगद्रव्यानुयोगरूपपरमागमपदार्थानां तीर्थंकरादिवृत्तांतलोकसंस्थानदेशसकलयतिधर्मपंचास्तिकायादीनां परमताशंकारहितं कथनमाक्षेपणी कथा </span>=<span class="HindiText">तहाँ तीर्थंकरादि के वृत्तांतरूप प्रथमानुयोग, लोक का वर्णनरूप करणानुयोग, श्रावक मुनिधर्म का कथनरूप चरणानुयोग, पंचास्तिकायादिक का कथनरूप द्रव्यानुयोग, इनका कथन और परमत की शंका दूर की जाती है, वह '''आक्षेपणी कथा''' है।</p> | ||
<p span class="GRef"> अनगारधर्मामृत/7/88/716 </span><span class="SanskritText">आक्षेपणीं स्वमतसंग्रहणीं समेक्षी,...।</span>=<span class="HindiText">जिसके द्वारा अपने मत का संग्रह अर्थात् अनेकांत सिद्धांत का यथायोग्य समर्थन हो, उसको '''आक्षेपणी कथा''' कहते हैं। | <p> <span class="GRef"> अनगारधर्मामृत/7/88/716 </span><span class="SanskritText">आक्षेपणीं स्वमतसंग्रहणीं समेक्षी,...।</span>=<span class="HindiText">जिसके द्वारा अपने मत का संग्रह अर्थात् अनेकांत सिद्धांत का यथायोग्य समर्थन हो, उसको '''आक्षेपणी कथा''' कहते हैं। | ||
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Latest revision as of 16:27, 18 February 2023
भगवती आराधना व विजयोदयी टीका/556/853 आक्खेवणी कहा सा विज्जाचरणमुवदिस्सदे जत्थ।...।656। आक्षेपणी कथा भण्यते। यस्यां कथायां ज्ञानं चारित्रं चोपदिश्यते।=जिसमें मति आदि सम्यग्ज्ञानों का तथा सामायिकादि सम्यग्चारित्रों का निरूपण किया जाता है, वह आक्षेपणी कथा है।
धवला 1/1,1,2/105/1 तथा श्लोक 75/106 तत्थ अक्खेवणीणाम छद्दव्वणवपयत्थाणं सरूवं दिगंतर-समयांतर-णिराकरणं सुद्धिं करेंती परूवेदि। उक्तं च-आक्षेपणीं तत्त्वविधानभूतां।...।75। =जो नाना प्रकार की एकांतदृष्टियों का और दूसरे समयों का निराकरणपूर्वक शुद्धि करके छह द्रव्य और नौ प्रकार के पदार्थों का प्ररूपण करती है, उसे आक्षेपणी कथा कहते हैं। ... कहा भी है – तत्त्वों का निरूपण करनेवाली आक्षेपणी कथा है।
गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/357/765/19 तत्र प्रथमानुयोगकरणानुयोगचरणानुयोगद्रव्यानुयोगरूपपरमागमपदार्थानां तीर्थंकरादिवृत्तांतलोकसंस्थानदेशसकलयतिधर्मपंचास्तिकायादीनां परमताशंकारहितं कथनमाक्षेपणी कथा =तहाँ तीर्थंकरादि के वृत्तांतरूप प्रथमानुयोग, लोक का वर्णनरूप करणानुयोग, श्रावक मुनिधर्म का कथनरूप चरणानुयोग, पंचास्तिकायादिक का कथनरूप द्रव्यानुयोग, इनका कथन और परमत की शंका दूर की जाती है, वह आक्षेपणी कथा है।
अनगारधर्मामृत/7/88/716 आक्षेपणीं स्वमतसंग्रहणीं समेक्षी,...।=जिसके द्वारा अपने मत का संग्रह अर्थात् अनेकांत सिद्धांत का यथायोग्य समर्थन हो, उसको आक्षेपणी कथा कहते हैं।
अन्य कथाओं और कथा के अन्य भेदों हेतु देखें कथा ।