कायिकी क्रिया: Difference between revisions
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<strong><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/6/5/321-323/11 </span></strong> <span class="SanskritText">पंचविंशति: क्रिया उच्यंते-..... प्रदुष्टस्य सतोऽभ्युद्यम: कायिकीक्रिया। ... समुदिता: पंचविंशतिक्रिया:।</span>=<span class="HindiText">.....दुष्टभाव युक्त होकर उद्यम करना <strong>कायिकीक्रिया</strong> है। ......पच्चीस क्रियाएँ होती हैं। </span> | <strong><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/6/5/321-323/11 </span></strong> <span class="SanskritText">पंचविंशति: क्रिया उच्यंते-..... प्रदुष्टस्य सतोऽभ्युद्यम: कायिकीक्रिया। ... समुदिता: पंचविंशतिक्रिया:।</span>=<span class="HindiText">.....दुष्टभाव युक्त होकर उद्यम करना <strong>कायिकीक्रिया</strong> है। ......पच्चीस क्रियाएँ होती हैं। </span> | ||
<span class="HindiText"> देखें [[ क्रिया#3.2 | क्रिया - 3.2]]।</span> | <span class="HindiText"> अन्य क्रियाओं के लिये देखें [[ क्रिया#3.2 | क्रिया - 3.2]]।</span> | ||
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<span class="HindiText"> दुर्भाव से युक्त होकर उद्यम करना । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58.66 </span> | <span class="HindiText"> दुर्भाव से युक्त होकर उद्यम करना । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_58#66|हरिवंशपुराण - 58.66]] </span> | ||
Latest revision as of 14:41, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
श्रावक की 25 क्रियाओं में से एक क्रिया कायिकी क्रिया है।
सर्वार्थसिद्धि/6/5/321-323/11 पंचविंशति: क्रिया उच्यंते-..... प्रदुष्टस्य सतोऽभ्युद्यम: कायिकीक्रिया। ... समुदिता: पंचविंशतिक्रिया:।=.....दुष्टभाव युक्त होकर उद्यम करना कायिकीक्रिया है। ......पच्चीस क्रियाएँ होती हैं।
अन्य क्रियाओं के लिये देखें क्रिया - 3.2।
पुराणकोष से
दुर्भाव से युक्त होकर उद्यम करना । हरिवंशपुराण - 58.66