कुंचित: Difference between revisions
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<span class="GRef"> अनगारधर्मामृत/8/98-111/822 </span><span class="SanskritGatha">......करामर्शोऽथ जांवंतः क्षेपः शीर्षस्य '''कुंचितम्'''। दृष्टं पश्यन् दिशः स्तौति पश्यन्स्वान्येषु सुष्ठु वा।107। ...... द्वात्रिंशो वंदने गीत्या दोषः सुललिताह्वयः। इति दोषोज्झिता कार्या वंदना निर्जरार्थिना।111। </span>= | <span class="GRef"> अनगारधर्मामृत/8/98-111/822 </span><span class="SanskritGatha">......करामर्शोऽथ जांवंतः क्षेपः शीर्षस्य '''कुंचितम्'''। दृष्टं पश्यन् दिशः स्तौति पश्यन्स्वान्येषु सुष्ठु वा।107। ...... द्वात्रिंशो वंदने गीत्या दोषः सुललिताह्वयः। इति दोषोज्झिता कार्या वंदना निर्जरार्थिना।111। </span>= | ||
<ol class="HindiText"> वंदना के 32 अतिचार | <ol class="HindiText"> वंदना के 32 अतिचार | ||
<li | <li class="HindiText"> ......</span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"> दोनों घुटनों के बीच में सिर रखना '''कुंचित''' दोष, </span></li> | ||
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Latest revision as of 14:41, 27 November 2023
अनगारधर्मामृत/8/98-111/822 ......करामर्शोऽथ जांवंतः क्षेपः शीर्षस्य कुंचितम्। दृष्टं पश्यन् दिशः स्तौति पश्यन्स्वान्येषु सुष्ठु वा।107। ...... द्वात्रिंशो वंदने गीत्या दोषः सुललिताह्वयः। इति दोषोज्झिता कार्या वंदना निर्जरार्थिना।111। =
- वंदना के 32 अतिचार
- ......
- दोनों घुटनों के बीच में सिर रखना कुंचित दोष,
कायोत्सर्ग का अतिचार–देखें व्युत्सर्ग 1.10।