गुरु मत: Difference between revisions
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<p> | <p><span class="GRef">(षड्दर्शन समुच्चय/68/66)</span>; <span class="GRef">( स्याद्वादमंजरी/ परि.च./438)</span> <p class="HindiText">मीमांसादर्शन के दो भेद हैं–1. पूर्वमीमांसा व उत्तरमीमांसा। यद्यपि दोनों मौलिक रूप से भिन्न हैं, परंतु ‘बोधायन’ ने इन दोनों दर्शनों को ‘संहित’ कहकर उल्लेख किया है तथा ‘उपवर्ष’ ने दोनों दर्शनों पर टीकाएँ लिखी हैं, इसी से विद्वानों का मत है कि किसी समय ये दोनों एक ही समझे जाते थे। 2. इनमें से उत्तरमीमांसा को बह्ममीमांसा या वेदांत भी कहते हैं, (इसके लिए–देखें [[ वेदांत ]])। 3. पूर्व मीमांसा के तीन संप्रदाय हैं–कुमारिल भट्ट का ‘भाट्टमत’, प्रभाकर मिश्र का ‘प्रभाकर मत’ या ‘'''गुरुमत'''’; तथा मंडन या मुरारीमिश्र का ‘मिश्रमत’। </p> | ||
देखें [[ मीमांसा दर्शन ]]। | देखें [[ मीमांसा दर्शन ]]। | ||
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(षड्दर्शन समुच्चय/68/66); ( स्याद्वादमंजरी/ परि.च./438)
मीमांसादर्शन के दो भेद हैं–1. पूर्वमीमांसा व उत्तरमीमांसा। यद्यपि दोनों मौलिक रूप से भिन्न हैं, परंतु ‘बोधायन’ ने इन दोनों दर्शनों को ‘संहित’ कहकर उल्लेख किया है तथा ‘उपवर्ष’ ने दोनों दर्शनों पर टीकाएँ लिखी हैं, इसी से विद्वानों का मत है कि किसी समय ये दोनों एक ही समझे जाते थे। 2. इनमें से उत्तरमीमांसा को बह्ममीमांसा या वेदांत भी कहते हैं, (इसके लिए–देखें वेदांत )। 3. पूर्व मीमांसा के तीन संप्रदाय हैं–कुमारिल भट्ट का ‘भाट्टमत’, प्रभाकर मिश्र का ‘प्रभाकर मत’ या ‘गुरुमत’; तथा मंडन या मुरारीमिश्र का ‘मिश्रमत’।
देखें मीमांसा दर्शन ।