गोत्र कर्म: Difference between revisions
From जैनकोष
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
No edit summary |
||
(One intermediate revision by the same user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
== सिद्धांतकोष से == | |||
<span class="GRef">धवला 6/1, 9-1, 11/13/7</span> <span class="SanskritText">गमयत्युच्चनीचकुलमिति गोत्रम् । उच्चनीचकुलेसु उप्पादओ पोग्गलक्खंधो मिच्छत्तदि-पच्चएहि जीवसंबद्धो गोदमिदि उच्चदे ।</span> = <span class="HindiText">जो उच्च और नीच कुल को ले जाता है, वह '''गोत्रकर्म''' है । मिथ्यात्व आदि बंधकारणों के द्वारा जीव के साथ संबंध को प्राप्त एवं उच्च और नीच कुलों में उत्पन्न कराने वाला पुद्गलस्कंध ‘'''गोत्र'''’ इस नाम से कहा जाता है । </span> | <span class="GRef">धवला 6/1, 9-1, 11/13/7</span> <span class="SanskritText">गमयत्युच्चनीचकुलमिति गोत्रम् । उच्चनीचकुलेसु उप्पादओ पोग्गलक्खंधो मिच्छत्तदि-पच्चएहि जीवसंबद्धो गोदमिदि उच्चदे ।</span> = <span class="HindiText">जो उच्च और नीच कुल को ले जाता है, वह '''गोत्रकर्म''' है । मिथ्यात्व आदि बंधकारणों के द्वारा जीव के साथ संबंध को प्राप्त एवं उच्च और नीच कुलों में उत्पन्न कराने वाला पुद्गलस्कंध ‘'''गोत्र'''’ इस नाम से कहा जाता है । </span> | ||
Line 8: | Line 9: | ||
[[ गोतम | पूर्व पृष्ठ ]] | [[ गोतम | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ | [[ गोदावरी | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: ग]] | [[Category: ग]] | ||
[[Category: करणानुयोग]] | [[Category: करणानुयोग]] | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | |||
== पुराणकोष से == | |||
<div class="HindiText"> <p class="HindiText"> उच्च और नीच कुल में पैदा करने वाला और उच्च और नीच व्यवहार का कारण कर्म । इसकी उत्कष्ट स्थिति बीस सागर और जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त होती है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_3#98|हरिवंशपुराण - 3.98]], [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_58#218|58.218]], </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 16.157-159 </span></p> | |||
</div> | |||
<noinclude> | |||
[[ गोतम | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ गोदावरी | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: ग]] | |||
[[Category: करणानुयोग]] | |||
[[Category: पुराण-कोष]] |
Latest revision as of 19:03, 5 February 2024
सिद्धांतकोष से
धवला 6/1, 9-1, 11/13/7 गमयत्युच्चनीचकुलमिति गोत्रम् । उच्चनीचकुलेसु उप्पादओ पोग्गलक्खंधो मिच्छत्तदि-पच्चएहि जीवसंबद्धो गोदमिदि उच्चदे । = जो उच्च और नीच कुल को ले जाता है, वह गोत्रकर्म है । मिथ्यात्व आदि बंधकारणों के द्वारा जीव के साथ संबंध को प्राप्त एवं उच्च और नीच कुलों में उत्पन्न कराने वाला पुद्गलस्कंध ‘गोत्र’ इस नाम से कहा जाता है ।
देखें वर्ण व्यवस्था - 1।
पुराणकोष से
उच्च और नीच कुल में पैदा करने वाला और उच्च और नीच व्यवहार का कारण कर्म । इसकी उत्कष्ट स्थिति बीस सागर और जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त होती है । हरिवंशपुराण - 3.98, 58.218, वीरवर्द्धमान चरित्र 16.157-159