चंद्रकांतशिला: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> चंद्रकांत मणि से निर्मित एक शिला । समवसरण में लतावन के मध्य इंद्रों के विश्राम के लिए ऐसी शिलाओं की रचना की जाती है । <span class="GRef"> महापुराण 6.115,22.127, 63.236 </span>तीर्थंकर वर्द्धमान निष्क्रमण काल में शिविका से उतरकर इसी शिला पर बैठे थे और और वहीं उन्होंने जिनदीक्षा ली थी । ये शिलाएँ रात्रि में चंद्रमा की किरणों का संस्पर्श पाकर द्रवीभूत होने लगती हैं । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.7, 7.75, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 12.86-100 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> चंद्रकांत मणि से निर्मित एक शिला । समवसरण में लतावन के मध्य इंद्रों के विश्राम के लिए ऐसी शिलाओं की रचना की जाती है । <span class="GRef"> महापुराण 6.115,22.127, 63.236 </span>तीर्थंकर वर्द्धमान निष्क्रमण काल में शिविका से उतरकर इसी शिला पर बैठे थे और और वहीं उन्होंने जिनदीक्षा ली थी । ये शिलाएँ रात्रि में चंद्रमा की किरणों का संस्पर्श पाकर द्रवीभूत होने लगती हैं । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_2#7|हरिवंशपुराण - 2.7]], 7.75, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 12.86-100 </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:42, 27 November 2023
चंद्रकांत मणि से निर्मित एक शिला । समवसरण में लतावन के मध्य इंद्रों के विश्राम के लिए ऐसी शिलाओं की रचना की जाती है । महापुराण 6.115,22.127, 63.236 तीर्थंकर वर्द्धमान निष्क्रमण काल में शिविका से उतरकर इसी शिला पर बैठे थे और और वहीं उन्होंने जिनदीक्षा ली थी । ये शिलाएँ रात्रि में चंद्रमा की किरणों का संस्पर्श पाकर द्रवीभूत होने लगती हैं । हरिवंशपुराण - 2.7, 7.75, वीरवर्द्धमान चरित्र 12.86-100