चारित्रमोह: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> मोहनीय कर्म का एक भेद । जीव इसके उपशम, क्षय और क्षयोपशम से चारित्र प्राप्त करता है । जो चारित्र धारण नहीं कर पाते वे सम्यक के प्रभाव से देवायु का बंध करते हैं । जो जीव संयतासंयत अर्थात् देश चारित्र को धारण करते हैं वे सौधर्म से लेकर अच्युत स्वर्ग तक के कल्पों में देव होते हैं । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 3.145-148 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> मोहनीय कर्म का एक भेद । जीव इसके उपशम, क्षय और क्षयोपशम से चारित्र प्राप्त करता है । जो चारित्र धारण नहीं कर पाते वे सम्यक के प्रभाव से देवायु का बंध करते हैं । जो जीव संयतासंयत अर्थात् देश चारित्र को धारण करते हैं वे सौधर्म से लेकर अच्युत स्वर्ग तक के कल्पों में देव होते हैं । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_3#145|हरिवंशपुराण - 3.145-148]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:41, 27 November 2023
मोहनीय कर्म का एक भेद । जीव इसके उपशम, क्षय और क्षयोपशम से चारित्र प्राप्त करता है । जो चारित्र धारण नहीं कर पाते वे सम्यक के प्रभाव से देवायु का बंध करते हैं । जो जीव संयतासंयत अर्थात् देश चारित्र को धारण करते हैं वे सौधर्म से लेकर अच्युत स्वर्ग तक के कल्पों में देव होते हैं । हरिवंशपुराण - 3.145-148