प्रदेश: Difference between revisions
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<span class="GRef"> प्रवचनसार/140 </span><span class="PrakritGatha">आगासमणुणिविट्ठं आगासपदेससण्णया भणिदं । सव्वेसिं च अणूणं सक्कदि तं देदुमवगासं ।140।</span> =<span class="HindiText"> एक परमाणु जितने आकाश में रहता है उतने आकाश को ‘आकाश प्रदेश’ के नाम से कहा गया है और वह समस्त परमाणुओं को अवकाश देने में समर्थ है ।140। | <span class="GRef"> प्रवचनसार/140 </span><span class="PrakritGatha">आगासमणुणिविट्ठं आगासपदेससण्णया भणिदं । सव्वेसिं च अणूणं सक्कदि तं देदुमवगासं ।140।</span> =<span class="HindiText"> एक परमाणु जितने आकाश में रहता है उतने आकाश को ‘आकाश प्रदेश’ के नाम से कहा गया है और वह समस्त परमाणुओं को अवकाश देने में समर्थ है ।140। <span class="GRef">( राजवार्तिक/5/1/8/432/33 )</span> <span class="GRef">( नयचक्र बृहद्/141 )</span><span class="GRef">( द्रव्यसंग्रह/27 )</span> <span class="GRef">( गोम्मटसार जीवकांड </span>मू./591/1029) <span class="GRef">( नियमसार / तात्पर्यवृत्ति/35-36 )</span> ।</span><br /> | ||
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Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- Space Point, ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ प्र. 107) ।
- Location, Points or Place as decimal Place. ( धवला 5/ प्र.27) ।
आकाश के छोटे-से-छोटे अविभागी अंशका नाम प्रदेश है, अर्थात् एक परमाणु जितनी जगह घेरता है उसे प्रदेश कहते हैं । जिस प्रकार अखंड भी आकाश में प्रदेशभेद की कल्पना करके अनंत प्रदेश बताये गये हैं, उसी प्रकार सभी द्रव्यों में पृथक्-पृथक् प्रदेशों की गणना का निर्देश किया गया है । उपचार से पुद्गल परमाणु को भी प्रदेश कहते हैं ।
- प्रदेश निर्देश
- प्रदेश का लक्षणः -
- स्कंध के भेद प्रभेद - देखें स्कंध - 1.2
- पृथक्-पृथक् द्रव्यों में प्रदेशों का प्रमाण - देखें वह वह द्रव्य ।
- द्रव्यों में प्रदेश-कल्पना संबंधी युक्ति - देखें द्रव्य - 4.2
- लोक के आठ मध्य प्रदेश - देखें लोक - 2.5
- जीव के चलिताचलित प्रदेश - देखें जीव - 4।
- प्रदेशबंध - देखें प्रदेशबंध ।
- स्कंध के भेद प्रभेद - देखें स्कंध - 1.2
- प्रदेश निर्देश
- प्रदेश का लक्षण
- परमाणु के अर्थ में
सर्वार्थसिद्धि/2/38/192/6 प्रदिश्यंत इति प्रदेशाः परमाणवः । = प्रदेश शब्द की व्युत्पत्ति ‘प्रदिश्यंते’ होती है । इसका अर्थ परमाणु है । ( सर्वार्थसिद्धि/5/8/274/7 ) ( राजवार्तिक/2/38/1/147/28 ) ।
- आकाश का अंश
प्रवचनसार/140 आगासमणुणिविट्ठं आगासपदेससण्णया भणिदं । सव्वेसिं च अणूणं सक्कदि तं देदुमवगासं ।140। = एक परमाणु जितने आकाश में रहता है उतने आकाश को ‘आकाश प्रदेश’ के नाम से कहा गया है और वह समस्त परमाणुओं को अवकाश देने में समर्थ है ।140। ( राजवार्तिक/5/1/8/432/33 ) ( नयचक्र बृहद्/141 )( द्रव्यसंग्रह/27 ) ( गोम्मटसार जीवकांड मू./591/1029) ( नियमसार / तात्पर्यवृत्ति/35-36 ) ।
कषायपाहुड़/2/2,2/12/7/10 निर्भाग आकाशावयवः (प्रदेश:) = जिसका दूसरा हिस्सा नहीं हो सकता ऐसे आकाश के अवयव को प्रदेश कहते हैं ।
- पर्याय के अर्थ में
पंचास्तिकाय / तत्त्वप्रदीपिका/5 प्रदेशाख्याः परस्परव्यतिरेकित्वात्पर्यायाः उच्यंते । = प्रदेश नाम के उनके जो अवयव हैं वे भी परस्पर व्यतिरेक वाले होने से पर्याय कहलाती हैं ।
- परमाणु के अर्थ में
- प्रदेश का लक्षण
पुराणकोष से
आकाश द्रव्य का सबसे छोटा भाग । हरिवंशपुराण - 7.17
- प्रदेश का लक्षणः -