आहार्य विपर्यय: Difference between revisions
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<span class="GRef"> (सर्वार्थसिद्धि/8/1/375/6) </span><span class="SanskritText">सग्रंथो निर्ग्रंथः, केवली कवलाहारी, स्त्री सिध्यतोत्येवमादिः विपर्ययः। </span>= <span class="HindiText">सग्रंथ को निर्ग्रंथ मानना, केवली को कवलाहारी मानना और स्त्री सिद्ध होती है इत्यादि मानना विपर्यय मिथ्यादर्शन है। | <span class="GRef"> (सर्वार्थसिद्धि/8/1/375/6) </span><span class="SanskritText">सग्रंथो निर्ग्रंथः, केवली कवलाहारी, स्त्री सिध्यतोत्येवमादिः विपर्ययः। </span> | ||
= <span class="HindiText">सग्रंथ को निर्ग्रंथ मानना, केवली को कवलाहारी मानना और स्त्री सिद्ध होती है इत्यादि मानना '''विपर्यय मिथ्यादर्शन है।''' <span class="GRef">( (राजवार्तिक/8/1/28/564/20) )</span>; <span class="GRef">( तत्त्वसार/5/6 )</span>। </span><br> | |||
<span class="GRef"> (धवला 8/3, 6/20/6) </span><span class="PrakritText">हिंसालियवयण-चोज्जमेहुणपरिग्गहरागदोसमोहण्णाणेहि चेव ण्णिव्वुई होइ त्ति अहिणिवेसो विवरीय मिच्छत्तं।</span> | |||
= <span class="HindiText">हिंसा अलोक वचन, चौर्य, मैथुन, परिग्रह, राग, द्वेष, मोह और अज्ञान, इनसे ही मुक्ति होती है, ऐसा अभिनिवेश '''विपरीत मिथ्यात्व''' कहलाता है। </span> | |||
<span class="GRef"> (अनगारधर्मामृत/2/7/124) </span><span class="SanskritText">येन प्रमाणतः क्षिप्तां श्रद्दधानाः श्रुतिं रसात्। चरंति श्रेयसे हिंसां स हिंस्या मोहराक्षसः।</span> | |||
= <span class="HindiText">मोहरूपी राक्षस का ही वध करना उचित है कि जिसके वश में पड़कर प्राणी, प्रमाण से खंडित किया जाने पर भी उस श्रुति (वेदों) का ही श्रद्धान करते हैं और पुण्यार्थ हिंसा (यज्ञादि) का आचरण करते हैं। </span><br> | |||
<span class="GRef"> (गोम्मटसार जीवकांड/ जी./प्र./16/41/3)</span> <span class="SanskritText">याज्ञिक ब्राह्मणादयः विपरीत मिथ्यादृष्टयः ।</span> = <span class="HindiText">याज्ञिकब्राह्मण आदि विपरीत मिथ्यादृष्टि हैं। <br /> | |||
<p class="HindiText">देखें [[ विपर्यय ]]।</p> | <p class="HindiText">देखें [[ विपर्यय ]]।</p> |
Latest revision as of 22:16, 17 November 2023
आहार्य का अर्थ बनावटी होता है। विपर्यय का अर्थ मिथ्या है।
(सर्वार्थसिद्धि/8/1/375/6) सग्रंथो निर्ग्रंथः, केवली कवलाहारी, स्त्री सिध्यतोत्येवमादिः विपर्ययः।
= सग्रंथ को निर्ग्रंथ मानना, केवली को कवलाहारी मानना और स्त्री सिद्ध होती है इत्यादि मानना विपर्यय मिथ्यादर्शन है। ( (राजवार्तिक/8/1/28/564/20) ); ( तत्त्वसार/5/6 )।
(धवला 8/3, 6/20/6) हिंसालियवयण-चोज्जमेहुणपरिग्गहरागदोसमोहण्णाणेहि चेव ण्णिव्वुई होइ त्ति अहिणिवेसो विवरीय मिच्छत्तं।
= हिंसा अलोक वचन, चौर्य, मैथुन, परिग्रह, राग, द्वेष, मोह और अज्ञान, इनसे ही मुक्ति होती है, ऐसा अभिनिवेश विपरीत मिथ्यात्व कहलाता है।
(अनगारधर्मामृत/2/7/124) येन प्रमाणतः क्षिप्तां श्रद्दधानाः श्रुतिं रसात्। चरंति श्रेयसे हिंसां स हिंस्या मोहराक्षसः।
= मोहरूपी राक्षस का ही वध करना उचित है कि जिसके वश में पड़कर प्राणी, प्रमाण से खंडित किया जाने पर भी उस श्रुति (वेदों) का ही श्रद्धान करते हैं और पुण्यार्थ हिंसा (यज्ञादि) का आचरण करते हैं।
(गोम्मटसार जीवकांड/ जी./प्र./16/41/3) याज्ञिक ब्राह्मणादयः विपरीत मिथ्यादृष्टयः । = याज्ञिकब्राह्मण आदि विपरीत मिथ्यादृष्टि हैं।
देखें विपर्यय ।