पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 73 - तात्पर्य-वृत्ति: Difference between revisions
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Latest revision as of 13:26, 30 June 2023
खंदा य खंददेसा खंदपदेसा य होंति परमाणू । (73)
इदि ते चदुव्वियप्पा पोग्गलकाया मुणेदव्वा ॥80॥
अर्थ:
स्कंध, स्कंधदेश, स्कंधप्रदेश और परमाणु ये चार भेद वाले पुद्गलकाय हैंऐसा जानना चाहिए।
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
[खंदा य खंददेसा खंदपदेसा य होंति] स्कंध, स्कंध-देश और स्कंध-प्रदेश -- ये तीन स्कन्ध होते हैं; [परमाणु] और परमाणु हैं [इदि ते चदुव्वियप्पा पोग्गलकाया मुणेदव्वा] इसप्रकार तीन स्कन्ध और परमाणु के भेद से पुद्गल-काय चार भेद वाले हैं, ऐसा जानना चाहिए ।
यहाँ उपादेय-भूत अनंत-सुख-रूप शुद्ध जीवास्तिकाय से विलक्षण होने के कारण यह हेय तत्त्व है, ऐसा भावार्थ है ॥८०॥