ज्ञानविनय: Difference between revisions
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<span class="GRef">राजवार्तिक/9/23/2-4/622/16</span> <span class="SanskritText">अनलसेन शुद्धमनसा देशकालादिविशुद्धिविधानविचक्षणेन सबहुमानो यथाशक्ति निषेव्यमाणो मोक्षर्थं ज्ञानग्रहणाभ्यासस्मरणादिर्ज्ञानविनयो वेदितव्यः।.. यथा भगवद्भिरुपदिष्टाः पदार्थाः तेषां तथाश्रद्धाने निःशंकितत्वादिलक्षणोपेतता दर्शनविनयो वेदितव्यः।....... ज्ञानदर्शनवतः पंचविधदुश्चरचरणश्रवणानंतरमुद्भिंन-रोमांचाभिव्यज्यमानांतर्भक्तेः परप्रसादो मस्तकांजलिकरणादिभिर्भावतश्चानुष्ठातृत्वं चारित्रविनयः प्रत्येतव्यः। </span>=<span class="HindiText"> आलस्य रहित हो देशकालादि की विशुद्धि के अनुसार शुद्धचित्त से बहुमान पूर्वक यथाशक्ति मोक्ष के लिए ज्ञानग्रहण अभ्यास और स्मरण आदि करना '''ज्ञान विनय''' है। जिनेंद्र भगवान् ने श्रुत समुद्र में पदर्थों का जैसा उपदेश दिया है, उसका उसी रूप से श्रद्धान करने आदि में निःशंक आदि होना दर्शन विनय है। ज्ञान और दर्शनशाली पुरुष के पाँच प्रकार के दुश्चर चारित्र का वर्णन सुनकर रोमांच आदि के द्वारा अंतर्भक्ति प्रगट करना, प्रणाम करना, मस्तक पर अंजलि रखकर आदर प्रगट करना और उसका भाव पूर्वक अनुष्ठान करना चारित्र विनय है। </span><br> | |||
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राजवार्तिक/9/23/2-4/622/16 अनलसेन शुद्धमनसा देशकालादिविशुद्धिविधानविचक्षणेन सबहुमानो यथाशक्ति निषेव्यमाणो मोक्षर्थं ज्ञानग्रहणाभ्यासस्मरणादिर्ज्ञानविनयो वेदितव्यः।.. यथा भगवद्भिरुपदिष्टाः पदार्थाः तेषां तथाश्रद्धाने निःशंकितत्वादिलक्षणोपेतता दर्शनविनयो वेदितव्यः।....... ज्ञानदर्शनवतः पंचविधदुश्चरचरणश्रवणानंतरमुद्भिंन-रोमांचाभिव्यज्यमानांतर्भक्तेः परप्रसादो मस्तकांजलिकरणादिभिर्भावतश्चानुष्ठातृत्वं चारित्रविनयः प्रत्येतव्यः। = आलस्य रहित हो देशकालादि की विशुद्धि के अनुसार शुद्धचित्त से बहुमान पूर्वक यथाशक्ति मोक्ष के लिए ज्ञानग्रहण अभ्यास और स्मरण आदि करना ज्ञान विनय है। जिनेंद्र भगवान् ने श्रुत समुद्र में पदर्थों का जैसा उपदेश दिया है, उसका उसी रूप से श्रद्धान करने आदि में निःशंक आदि होना दर्शन विनय है। ज्ञान और दर्शनशाली पुरुष के पाँच प्रकार के दुश्चर चारित्र का वर्णन सुनकर रोमांच आदि के द्वारा अंतर्भक्ति प्रगट करना, प्रणाम करना, मस्तक पर अंजलि रखकर आदर प्रगट करना और उसका भाव पूर्वक अनुष्ठान करना चारित्र विनय है।
अधिक जानकारी के लिये देखेंविनय ।