झष: Difference between revisions
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<p id="2" class="HindiText">(2) पाँचवी पृथिवी (धूमप्रभा) के तृतीय प्रस्तार का इंद्रक बिल । इसकी चारों महादिशाओं में अट्ठाईस और विदिशाओं मे चौबीस कुल बावन श्रेणिबद्ध बिल है । इसका विस्तार छ: लाख पचास हजार योजन है । इसकी जघन्य स्थिति भ्रम इंद्रक की उत्कृष्ट स्थिति के समान तथा उत्कृष्ट स्थिति चौदह सागर और एक सागर के पाँच भागो में एक भाग प्रमाण होती है । यहाँ के नारकी सौ धनुष ऊँचे होते हैं । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_4#83|हरिवंशपुराण - 4.83]].140, 211, 287-288-334 </span></p> | |||
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[[Category: पुराण-कोष]] | |||
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[[Category: करणानुयोग]] | |||
[[Category: प्रथमानुयोग]] |
Latest revision as of 15:38, 16 February 2024
सिद्धांतकोष से
5 वें नरक का तीसरा पटल–देखें नरक - 5.11।
पुराणकोष से
(1) गर्भावस्था में तीर्थंकर को माता द्वारा देखे गये सोलह स्वप्नों में एक स्वप्न-मीन-युगल । पद्मपुराण - 21.12-14
(2) पाँचवी पृथिवी (धूमप्रभा) के तृतीय प्रस्तार का इंद्रक बिल । इसकी चारों महादिशाओं में अट्ठाईस और विदिशाओं मे चौबीस कुल बावन श्रेणिबद्ध बिल है । इसका विस्तार छ: लाख पचास हजार योजन है । इसकी जघन्य स्थिति भ्रम इंद्रक की उत्कृष्ट स्थिति के समान तथा उत्कृष्ट स्थिति चौदह सागर और एक सागर के पाँच भागो में एक भाग प्रमाण होती है । यहाँ के नारकी सौ धनुष ऊँचे होते हैं । हरिवंशपुराण - 4.83.140, 211, 287-288-334