ईर्यापथ शुद्धि: Difference between revisions
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<span class="GRef"> राजवार्तिक/9/6/16/597/13 </span><span class="SanskritText">ईर्यापथशुद्धि: नानाविधजीवस्थानयोंयाश्रयावबोधजनितप्रयत्नपरिहृतजंतुपीड़ाज्ञानादित्यस्वेंद्रियप्रकाशनिरीक्षितदेशगामिनी द्रुतविलंबितसंभ्रांतविस्मितलीलाविकारदिगंतरावलोकनादिदोषविरहितगमना। तस्यां सत्यां संयम: प्रतिष्ठितो भवति विभव इव सुनीतौ।</span> =<span class="HindiText">अनेक प्रकार के जीवस्थान योनिस्थान जीवाश्रय आदि के विशिष्ट ज्ञानपूर्वक प्रयत्न के द्वारा जिसमें जंतु पीड़ा का बचाव किया जाता है, जिसमें ज्ञान, सूर्य प्रकाश, और इंद्रिय प्रकाश से अच्छी तरह देखकर गमन किया जाता है तथा जो शीघ्र, विलंबित, संभ्रांत, विस्मित, लीला विकार अन्य दिशाओं की ओर देखना आदि गमन के दोषों से रहित गतिवाली है वह '''ईर्यापथ शुद्धि''' है। | <span class="GRef"> राजवार्तिक/9/6/16/597/13 </span><span class="SanskritText">ईर्यापथशुद्धि: नानाविधजीवस्थानयोंयाश्रयावबोधजनितप्रयत्नपरिहृतजंतुपीड़ाज्ञानादित्यस्वेंद्रियप्रकाशनिरीक्षितदेशगामिनी द्रुतविलंबितसंभ्रांतविस्मितलीलाविकारदिगंतरावलोकनादिदोषविरहितगमना। तस्यां सत्यां संयम: प्रतिष्ठितो भवति विभव इव सुनीतौ।</span> =<span class="HindiText">अनेक प्रकार के जीवस्थान योनिस्थान जीवाश्रय आदि के विशिष्ट ज्ञानपूर्वक प्रयत्न के द्वारा जिसमें जंतु पीड़ा का बचाव किया जाता है, जिसमें ज्ञान, सूर्य प्रकाश, और इंद्रिय प्रकाश से अच्छी तरह देखकर गमन किया जाता है तथा जो शीघ्र, विलंबित, संभ्रांत, विस्मित, लीला विकार अन्य दिशाओं की ओर देखना आदि गमन के दोषों से रहित गतिवाली है वह '''ईर्यापथ शुद्धि''' है। <span class="GRef">( चारित्रसार/76/7 )</span></span></p> | ||
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Latest revision as of 22:16, 17 November 2023
राजवार्तिक/9/6/16/597/13 ईर्यापथशुद्धि: नानाविधजीवस्थानयोंयाश्रयावबोधजनितप्रयत्नपरिहृतजंतुपीड़ाज्ञानादित्यस्वेंद्रियप्रकाशनिरीक्षितदेशगामिनी द्रुतविलंबितसंभ्रांतविस्मितलीलाविकारदिगंतरावलोकनादिदोषविरहितगमना। तस्यां सत्यां संयम: प्रतिष्ठितो भवति विभव इव सुनीतौ। =अनेक प्रकार के जीवस्थान योनिस्थान जीवाश्रय आदि के विशिष्ट ज्ञानपूर्वक प्रयत्न के द्वारा जिसमें जंतु पीड़ा का बचाव किया जाता है, जिसमें ज्ञान, सूर्य प्रकाश, और इंद्रिय प्रकाश से अच्छी तरह देखकर गमन किया जाता है तथा जो शीघ्र, विलंबित, संभ्रांत, विस्मित, लीला विकार अन्य दिशाओं की ओर देखना आदि गमन के दोषों से रहित गतिवाली है वह ईर्यापथ शुद्धि है। ( चारित्रसार/76/7 )
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