तत्त्वार्थ: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<span class="GRef"> नियमसार/9 </span><span class="PrakritGatha">जीवापोग्गलकाया धम्माधम्मा य काल आयासं। तच्चत्था इदि भणिदा णाणागुणपज्जएहिं संजुत्ता।9।</span> =<span class="HindiText">जीव, पुद्गलकाय, धर्म, अधर्म, काल और आकाश यह '''तत्त्वार्थ''' कहे हैं, जो कि विविधगुणपर्यायों से संयुक्त है। <br> | |||
</span><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/1/2/8/5 </span><span class="SanskritText">अर्यत इत्यर्थो निश्चीयत इति यावत् । तत्त्वेनार्थस्तत्त्वार्थ: अथवा भावेन भाववतोऽभिधानम्, तदव्यतिरेकात् । तत्त्वमेवार्थस्तत्त्वार्थ:। </span>=<span class="HindiText">अर्थ शब्द का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है–अर्यते निश्चीयते इत्यर्थ:=जो निश्चय किया जाता है। यहाँ तत्त्व और अर्थ इन दोनों शब्दों के संयोग से तत्त्वार्थ शब्द बना है जो ‘तत्त्वेन अर्थ: तत्त्वार्थ’ ऐसा समास करने पर प्राप्त होता है। अथवा भाव द्वारा भाववाले पदार्थ का कथन किया जाता है, क्योंकि भाव भाववाले से अलग नहीं पाया जाता है। ऐसी हालत में इसका समास होगा</span> <span class="SanskritText">‘तत्त्वमेव अर्थ: '''तत्त्वार्थ''':।’ </span> | |||
[[ | <span class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ तत्त्व#1 | तत्त्व - 1]]।</span> | ||
[[Category:त]] | <noinclude> | ||
[[ तत्त्वानुशासन | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ तत्त्वार्थ बोध | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: त]] | |||
[[Category: द्रव्यानुयोग]] |
Latest revision as of 15:22, 8 September 2023
नियमसार/9 जीवापोग्गलकाया धम्माधम्मा य काल आयासं। तच्चत्था इदि भणिदा णाणागुणपज्जएहिं संजुत्ता।9। =जीव, पुद्गलकाय, धर्म, अधर्म, काल और आकाश यह तत्त्वार्थ कहे हैं, जो कि विविधगुणपर्यायों से संयुक्त है।
सर्वार्थसिद्धि/1/2/8/5 अर्यत इत्यर्थो निश्चीयत इति यावत् । तत्त्वेनार्थस्तत्त्वार्थ: अथवा भावेन भाववतोऽभिधानम्, तदव्यतिरेकात् । तत्त्वमेवार्थस्तत्त्वार्थ:। =अर्थ शब्द का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है–अर्यते निश्चीयते इत्यर्थ:=जो निश्चय किया जाता है। यहाँ तत्त्व और अर्थ इन दोनों शब्दों के संयोग से तत्त्वार्थ शब्द बना है जो ‘तत्त्वेन अर्थ: तत्त्वार्थ’ ऐसा समास करने पर प्राप्त होता है। अथवा भाव द्वारा भाववाले पदार्थ का कथन किया जाता है, क्योंकि भाव भाववाले से अलग नहीं पाया जाता है। ऐसी हालत में इसका समास होगा ‘तत्त्वमेव अर्थ: तत्त्वार्थ:।’
अधिक जानकारी के लिये देखें तत्त्व - 1।