आशा: Difference between revisions
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<p class="HindiText"> 1. <span class="GRef"> (भगवती आराधना आ./1181/1167/16)</span> <span class="SanskritText">चिरमेते ईदृशा विषया ममोदितोदिता भूयासुरित्याशंसा । तृष्णां इमे मनागपि मत्तो मा विच्छिद्यांतां इति तीव्रं प्रबंधप्रवृत्त्यभिलाषम् ।</span> =<span class="HindiText"> चिरकाल तक मेरे को सुख देने वाले विषय उत्तरोत्तर अधिक प्रमाण से मिलें ऐसी इच्छा करना उसको आशा कहते हैं । ये सुखदायक पदार्थ कभी भी मेरे से अलग न होवें ऐसी तीव्र अभिलाषा को तृष्णा कहते हैं । अधिक जानकारी के लिए देखें [[ राग#2.6 | राग 2.6 ]], [[अभिलाषा ]];</p> | <p class="HindiText"> 1. <span class="GRef"> (भगवती आराधना आ./1181/1167/16)</span> <span class="SanskritText">चिरमेते ईदृशा विषया ममोदितोदिता भूयासुरित्याशंसा । तृष्णां इमे मनागपि मत्तो मा विच्छिद्यांतां इति तीव्रं प्रबंधप्रवृत्त्यभिलाषम् ।</span> =<span class="HindiText"> चिरकाल तक मेरे को सुख देने वाले विषय उत्तरोत्तर अधिक प्रमाण से मिलें ऐसी इच्छा करना उसको '''आशा''' कहते हैं । ये सुखदायक पदार्थ कभी भी मेरे से अलग न होवें ऐसी तीव्र अभिलाषा को तृष्णा कहते हैं । अधिक जानकारी के लिए देखें [[ राग#2.6 | राग 2.6 ]], [[अभिलाषा ]];</p> | ||
<p class="HindiText"> 2. रुचक पर्वत निवासिनी दिक्कुमारी देवी - देखें [[ द्वीप_पर्वतों_आदि_के_नाम_रस_आदि#5.13 | लोक - 5.13]]।</p> | <p class="HindiText"> 2. रुचक पर्वत निवासिनी दिक्कुमारी देवी - देखें [[ द्वीप_पर्वतों_आदि_के_नाम_रस_आदि#5.13 | लोक - 5.13]]।</p> | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<span class="HindiText"> (1) रुचकगिरि के उत्तरदिशावर्ती आठ कूटों मे पांचवें रजतकूट की निवासिनी देवी । <span class="GRef"> (हरिवंशपुराण 5.716) </span> | <span class="HindiText"> (1) रुचकगिरि के उत्तरदिशावर्ती आठ कूटों मे पांचवें रजतकूट की निवासिनी देवी । <span class="GRef"> ([[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#716|हरिवंशपुराण - 5.716]]) </span> | ||
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(2) दिशा का पर्यायवाची शब्द । <span class="GRef"> (हरिवंशपुराण 3.27) </span> | (2) दिशा का पर्यायवाची शब्द । <span class="GRef"> ([[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_3#27|हरिवंशपुराण - 3.27]]) </span> | ||
Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
1. (भगवती आराधना आ./1181/1167/16) चिरमेते ईदृशा विषया ममोदितोदिता भूयासुरित्याशंसा । तृष्णां इमे मनागपि मत्तो मा विच्छिद्यांतां इति तीव्रं प्रबंधप्रवृत्त्यभिलाषम् । = चिरकाल तक मेरे को सुख देने वाले विषय उत्तरोत्तर अधिक प्रमाण से मिलें ऐसी इच्छा करना उसको आशा कहते हैं । ये सुखदायक पदार्थ कभी भी मेरे से अलग न होवें ऐसी तीव्र अभिलाषा को तृष्णा कहते हैं । अधिक जानकारी के लिए देखें राग 2.6 , अभिलाषा ;
2. रुचक पर्वत निवासिनी दिक्कुमारी देवी - देखें लोक - 5.13।
पुराणकोष से
(1) रुचकगिरि के उत्तरदिशावर्ती आठ कूटों मे पांचवें रजतकूट की निवासिनी देवी । (हरिवंशपुराण - 5.716)
(2) दिशा का पर्यायवाची शब्द । (हरिवंशपुराण - 3.27)