इंद्रिय ज्ञान: Difference between revisions
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<span class="GRef"> कषायपाहुड़ 1/101/28/42/4 </span><span class="PrakritText">इंदियणोइंदिएहि सद्द-रस-परिसरूव-गंधादिविसएसु ओग्गह-ईहावाय-धारणाओ मदिणाणं।</span> = <span class="HindiText">इंद्रिय और मन के निमित्त से शब्द रस स्पर्श रूप और गंधादि विषयों मे अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणारूप जो ज्ञान होता है, वह मतिज्ञान है। | <span class="GRef"> कषायपाहुड़ 1/101/28/42/4 </span><span class="PrakritText">इंदियणोइंदिएहि सद्द-रस-परिसरूव-गंधादिविसएसु ओग्गह-ईहावाय-धारणाओ मदिणाणं।</span> = <span class="HindiText">इंद्रिय और मन के निमित्त से शब्द रस स्पर्श रूप और गंधादि विषयों मे अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणारूप जो ज्ञान होता है, वह मतिज्ञान है। <span class="GRef">( द्रव्यसंग्रह टीका/44/188/1 )</span>।</span><br /> | ||
<p class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ मतिज्ञान ]]।</p> | <p class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ मतिज्ञान ]]।</p> | ||
Latest revision as of 22:16, 17 November 2023
धवला 1/1,1,115/354/1 पंचभिरिंद्रियैर्मनसा च यदर्थग्रहणं तन्मतिज्ञानम्। = पाँच इंद्रियों और मन से जो पदार्थ का ग्रहण होता है, उसे मतिज्ञान कहते हैं।
कषायपाहुड़ 1/101/28/42/4 इंदियणोइंदिएहि सद्द-रस-परिसरूव-गंधादिविसएसु ओग्गह-ईहावाय-धारणाओ मदिणाणं। = इंद्रिय और मन के निमित्त से शब्द रस स्पर्श रूप और गंधादि विषयों मे अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणारूप जो ज्ञान होता है, वह मतिज्ञान है। ( द्रव्यसंग्रह टीका/44/188/1 )।
अधिक जानकारी के लिये देखें मतिज्ञान ।