जल चारण: Difference between revisions
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<span class="GRef">धवला पुस्तक संख्या ९/४,१,१७/७९-३; ८१-७</span> <span class="PrakritText">तत्थ भूमीए इव जलकाइयजीवाणं पीडमकाऊण जलमफुसंता जहिच्छाए जलगमणसत्था रिसओ जलचारणा णाम। पउणिपत्तं व जलपासेण विणा जलमज्झगामिणो जलचारणा त्ति किण्ण उच्चंति। ण एस दोसो, इच्छिज्जमाणत्तादो ।७९-३। ओसकखासधूमरोहिमादिचारणाणं जलचारणेसु अंतब्भावो, आउक्काइयजीवपरिहरणकुशलत्तं पडि साहम्मदंसणादो ।८१-७। </span>=<span class="HindiText"> जो ऋषि जलकायिक जीवों को बाधा न पहुँचाकर जल को न छूते हुए इच्छानुसार भूमि के समान जल में गमन करने में समर्थ हैं, वे जलचारण कहलाते हैं। (जल पर भी पाद निक्षेप पूर्वक गमन करते हैं)। प्रश्न-पद्मिनी पत्र के समान जल को न छूकर जल के मध्य में गमन करने वाले जलचारण क्यों नहीं कहलाते? उत्तर-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि ऐसा अभीष्ट है।</span> | <span class="GRef">धवला पुस्तक संख्या ९/४,१,१७/७९-३; ८१-७</span> <span class="PrakritText">तत्थ भूमीए इव जलकाइयजीवाणं पीडमकाऊण जलमफुसंता जहिच्छाए जलगमणसत्था रिसओ जलचारणा णाम। पउणिपत्तं व जलपासेण विणा जलमज्झगामिणो जलचारणा त्ति किण्ण उच्चंति। ण एस दोसो, इच्छिज्जमाणत्तादो ।७९-३। ओसकखासधूमरोहिमादिचारणाणं जलचारणेसु अंतब्भावो, आउक्काइयजीवपरिहरणकुशलत्तं पडि साहम्मदंसणादो ।८१-७। </span>=<span class="HindiText"> जो ऋषि जलकायिक जीवों को बाधा न पहुँचाकर जल को न छूते हुए इच्छानुसार भूमि के समान जल में गमन करने में समर्थ हैं, वे जलचारण कहलाते हैं। (जल पर भी पाद निक्षेप पूर्वक गमन करते हैं)। प्रश्न-पद्मिनी पत्र के समान जल को न छूकर जल के मध्य में गमन करने वाले जलचारण क्यों नहीं कहलाते? उत्तर-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि ऐसा अभीष्ट है।</span> <span class="GRef">(तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या ४/१०३६)</span> <span class="GRef">(राजवार्तिक अध्याय संख्या ३/३६/३/२०२/२८)</span> <span class="GRef">(चारित्रसार पृष्ठ संख्या २१८/२)</span>। <span class="HindiText">ओस, ओला, कुहरा और बर्फ आदि पर गमन करनेवाले चारणों का जलचारणों में अन्तर्भाव होता है। क्योंकि इनमें जलकायिक जीवों के परिहार की कुशलता देखी जाती है।</span> | ||
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धवला पुस्तक संख्या ९/४,१,१७/७९-३; ८१-७ तत्थ भूमीए इव जलकाइयजीवाणं पीडमकाऊण जलमफुसंता जहिच्छाए जलगमणसत्था रिसओ जलचारणा णाम। पउणिपत्तं व जलपासेण विणा जलमज्झगामिणो जलचारणा त्ति किण्ण उच्चंति। ण एस दोसो, इच्छिज्जमाणत्तादो ।७९-३। ओसकखासधूमरोहिमादिचारणाणं जलचारणेसु अंतब्भावो, आउक्काइयजीवपरिहरणकुशलत्तं पडि साहम्मदंसणादो ।८१-७। = जो ऋषि जलकायिक जीवों को बाधा न पहुँचाकर जल को न छूते हुए इच्छानुसार भूमि के समान जल में गमन करने में समर्थ हैं, वे जलचारण कहलाते हैं। (जल पर भी पाद निक्षेप पूर्वक गमन करते हैं)। प्रश्न-पद्मिनी पत्र के समान जल को न छूकर जल के मध्य में गमन करने वाले जलचारण क्यों नहीं कहलाते? उत्तर-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि ऐसा अभीष्ट है। (तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या ४/१०३६) (राजवार्तिक अध्याय संख्या ३/३६/३/२०२/२८) (चारित्रसार पृष्ठ संख्या २१८/२)। ओस, ओला, कुहरा और बर्फ आदि पर गमन करनेवाले चारणों का जलचारणों में अन्तर्भाव होता है। क्योंकि इनमें जलकायिक जीवों के परिहार की कुशलता देखी जाती है।
अधिक जानकारी के लिये देखें ऋद्धि - 4।