देशसत्य: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> दस प्रकार के सत्यों में एक सत्य । इस सत्य में गांव और नगर की रीति, राजा की नीति तथा गण और आश्रमों का उपदेश करने वाला वचन समाहित होता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10.105 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> दस प्रकार के सत्यों में एक सत्य । इस सत्य में गांव और नगर की रीति, राजा की नीति तथा गण और आश्रमों का उपदेश करने वाला वचन समाहित होता है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_10#105|हरिवंशपुराण - 10.105]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
मूलाचार/309-313 जणपदसच्चं जध ओदणादि रुचिदे य सव्वभासाए। बहुजणसंमदमवि होदि जं तु लोए तहा देवी।309। ....... जो सब भाषाओं से भात के नाम पृथक्-पृथक् बोले जाते हैं जैसे चोरु, कूल, भक्त आदि ये देशसत्य हैं। .....
अधिक जानकारी के लिये देखें सत्य - 1।
पुराणकोष से
दस प्रकार के सत्यों में एक सत्य । इस सत्य में गांव और नगर की रीति, राजा की नीति तथा गण और आश्रमों का उपदेश करने वाला वचन समाहित होता है । हरिवंशपुराण - 10.105