पद्मपुराण - पर्व 94: Difference between revisions
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Latest revision as of 18:26, 15 September 2024
चौरानवेवां पर्व
अथानंतर विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में रत्नरथ के सिवाय जो अन्य विद्याधर थे शस्त्रों के अंधकार से युक्त युद्ध में लक्ष्मण ने उन सबको भी वश कर लिया ॥1॥ जो विद्याधर पहले महानाग के समान अत्यंत दुःसह थे वे अब शूर-वीरता रूपी विष से रहित हो राम के सेवक हो गये ॥2॥ हे राजन् ! अब मैं स्वर्ग के समान तेज को धारण करने वाली उन नगरियों के कुछ नाम तेरे लिए कहूँगा सो श्रवण कर ॥3॥ रविप्रभ, वह्निप्रभ, काश्चन, मेघ, शिवमंदिर, गंधर्वगीत, अमृतपुर, लक्ष्मीधर, किन्नरोद्गीत, जीमूतशिखर, मानुगीत, चक्रपुर, रथनूपुर, बहुरव, मलय, श्रीगृह, भास्कराभ, अरिंजय, ज्योतिःपुर, शशिच्छाय, गांधार, मलय, सिंहपुर, श्रीविजयपुर, यक्षपुर और तिलकपुर । हे पुरुषोत्तम ! इन्हें आदि लेकर अनेक उत्तमोत्तम नगर उन महापुरुष लक्ष्मण ने वश में किये ॥4-9॥ इस प्रकार लक्ष्मण सुंदर समस्त पृथिवी को वश कर सात रत्नों से सहित होता हुआ संपूर्ण नारायण पद को प्राप्त हुआ ॥10॥ चक्र, छत्र, धनुष, शक्ति, गदा, मणि और खड्ग ये सात रत्न लक्ष्मण को प्राप्त हुए थे ॥11॥ [ तथा हल, मुसल, गदा और रत्नमाला ये चार रत्न राम को प्राप्त थे।] तदनंतर श्रेणिक ने गौतम स्वामी से कहा कि हे भगवन् ! मैंने आपके प्रसाद से विधिपूर्वक राम और लक्ष्मण का माहात्म्य जान लिया है अब लवणांकुश की उत्पत्ति तथा लक्ष्मण के पुत्रों का जन्म जानना चाहता हूँ सो आप कहने के योग्य हैं ॥12-13॥
तदनंतर मुनिसंघ के स्वामी श्री गौतम गणधर ने उच्च स्वर में कहा कि हे राजन् ! सुन, मैं तेरी इच्छित कथावस्तु कहता हूँ ॥14।। अथानंतर युग के प्रधान पुरुष जो राम, लक्ष्मण थे वे निष्कंटक महा राज्य से उत्पन्न भोगोपभोग की सामग्री से सहित थे तथा दोढुंदक नामक देव के द्वारा अनुज्ञात महासुख में आसक्त थे । इस तरह उनके दिन, पक्ष, मास, वर्ष और युग व्यतीत हो गये ॥15-16।। जो देवांगनाओं के समान थीं तथा उत्तम कुल में जिनका जन्म हुआ था ऐसी सत्तरह हजार स्त्रियां लक्ष्मण की थीं ॥17॥ उन स्त्रियों में कीर्ति, लक्ष्मी और रति की समानता प्राप्त करने वाली गुणवती, शीलवती, कलावती, सौम्य और सुंदर चेष्टाओं को धारण करने वाली आठ महादेवियाँ थीं ॥18।। हे राजन् ! अब मैं यथा क्रम से उन महादेवियों के सुंदर नाम कहता हूँ सो सुन ॥16॥ सर्वप्रथम राजा द्रोणमेघ की पुत्री विशल्या, उसके अनंतर उपमा से रहित रूपवती, फिर तीसरी वनमाला, जो कि वसंत की लक्ष्मी से मानो सहित ही थी, जिसके नाम से ही महागुणों की सूचना मिल रही थी ऐसी चौथी कल्याणमाला, जो रतिमाला के समान रूपवती थी ऐसी पाँचवीं रतिमाला, जिसने अपने मुख से कमल को जीत लिया था ऐसी छठवीं जितपद्मा, सातवीं भगवती और आठवीं मनोरमा ये लक्ष्मण की आठ प्रमुख स्त्रियाँ थीं ॥20-23॥
रामचंद्रजी को देवांगनाओं के समान आठ हजार स्त्रियाँ थीं। उनमें जगत् प्रसिद्ध कीर्ति को धारण करने वाली चार महादेवियाँ थीं ।।24।। प्रथम सीता, द्वितीय प्रभावती, तृतीय रतिनिभा और चतुर्थ श्रीदामा ये उन महादेवियों के नाम हैं ॥25॥ इन सब स्त्रियों के मध्य में स्थित सुंदर लक्षणों वाली सीता, ताराओं के मध्य में स्थित चंद्रकला के समान सुशोभित होती थी ॥26॥ लक्ष्मण के अढाई सौ पुत्र थे उनमें से कुछ के नाम कहता हूँ सो सुन ॥27॥ वृषभ, धरण, चंद्र, शरभ, मकरध्वज, धारण, हरिनाग, श्रीधर, मदन और अच्युत ॥28।। जिनके गुणों में अनुरक्त हुए पुरुष अनन्यचित्त हो जाते थे ऐसे सुंदर चेष्टाओं को धारण करने वाले आठ कुमार उन पुत्रों में प्रमुख थे ॥29॥
उनमें से श्रीधर, विशल्या सुंदरी का पुत्र था जो अयोध्यापुरी में उस प्रकार सुशोभित होता था जिस प्रकार कि आकाश में चंद्रमा सुशोभित होता है ॥30॥ रूपवती के पुत्र का नाम पृथिवीतिलक था जो उत्तम कांति को धारण करता हुआ पृथिवीतल पर अत्यंत प्रसिद्ध था ॥31॥ कल्याणमाला का पुत्र मंगल नाम से प्रसिद्ध था । वह अनेक कल्याणों का पात्र था तथा मांगलिक क्रियाओं के करने में सदा तत्पर रहता था ॥32॥ पद्मावती के विमलप्रभ नाम का पुत्र हुआ था।
वनमाला ने अर्जुन वृक्ष नामक पुत्र को जन्म दिया था ॥33॥ राजा अतिवीर्य की पुत्री ने श्रीकेशी नामक पुत्र उत्पन्न किया था । भगवती का पुत्र सत्यकीर्ति इस नाम से प्रसिद्ध था ॥34।। और मनोरमा ने सुपार्श्वकीर्ति नामक पुत्र प्राप्त किया था। ये सभी कुमार महाशक्तिशाली तथा शस्त्र और शास्त्र दोनों में निपुण थे ॥35॥ इन सब भाइयों की नख और मांस के समान सुदृढ़ संगति थी तथा इन सबकी समान एवं उचित चेष्टा लोक में सर्वत्र प्रशंसा प्राप्त करती थी ॥36।। सो परस्पर एक दूसरे के हृदय में विद्यमान थे तथा जिनके चित्त प्रेम से परिपूर्ण थे ऐसे ये आठों कुमार स्वर्ग में आठ वसुओं के समान नगर में अपनी इच्छानुसार क्रीड़ा करते थे ॥37॥
गौतम स्वामी कहते हैं कि जिन्होंने पूर्व पर्याय में पुण्य उत्पन्न किया है तथा जिनका चित्त शुभभाव रूप रहा है ऐसे प्राणियों की समस्त चेष्टाएँ जन्म से ही अत्यंत मनोहर होती हैं इस प्रकार उस नगरी में सब मिलाकर साढ़े चार करोड़ राजकुमार थे जो उत्कृष्ट शक्ति से प्रसिद्ध तथा अत्यंत मनोहर थे ॥38-36।। जो नाना देशों में निवास करते थे, जिनके मस्तक पर मुकुट बंधे हुए थे, तथा जिनका तेज सूर्य के समान था ऐसे सोलह हजार राजा राम और लक्ष्मण के चरणों की सेवा करते थे ॥40॥
इस प्रकार आर्ष नाम से प्रसिद्ध, श्रीरविषेणाचार्य द्वारा कथित पद्मपुराण में राम-लक्ष्मण की विभूति को दिखाने वाला चौरानवेवाँ पर्व समाप्त हुआ ॥94॥