परीषह: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> सहनशक्ति की प्रबलता से सही जाने वाली एवं मोक्षमार्ग में आने वाली बाधाएँ । इन्हीं के कारण सम्यक्चारित्र को पाकर भी तपस्वी भ्रष्ट हो जाते हैं । ये बाधायें बाईस होती हैं । वे हैं― क्षुधा, पिपासा (तृषा), शीत, उष्ण, दंश-मशक, नाग्न्य, अरति, स्त्री, चर्या, शय्या, निषद्या, आक्रोश, वध, याचना, अलाभ, अदर्शन, रोग, तृणस्पर्श, प्रज्ञा, अज्ञान, मल और सत्कार-पुरस्कार । मार्ग से च्युत न होने तथा कर्मों की निर्जरा हेतु इनको सहन किया जाता है । इनकी विजय पर ही महात्माओं की सिद्धि आश्रित होती है । इनकी विजय के लिए अनुप्रेक्षाओं का चिंतन किया जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 5. 243-244, 11. 100-102, 36.116, 128, 42. 126-127, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_2#184|पद्मपुराण -2. 184]], 22. 169 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> सहनशक्ति की प्रबलता से सही जाने वाली एवं मोक्षमार्ग में आने वाली बाधाएँ । इन्हीं के कारण सम्यक्चारित्र को पाकर भी तपस्वी भ्रष्ट हो जाते हैं । ये बाधायें बाईस होती हैं । वे हैं― क्षुधा, पिपासा (तृषा), शीत, उष्ण, दंश-मशक, नाग्न्य, अरति, स्त्री, चर्या, शय्या, निषद्या, आक्रोश, वध, याचना, अलाभ, अदर्शन, रोग, तृणस्पर्श, प्रज्ञा, अज्ञान, मल और सत्कार-पुरस्कार । मार्ग से च्युत न होने तथा कर्मों की निर्जरा हेतु इनको सहन किया जाता है । इनकी विजय पर ही महात्माओं की सिद्धि आश्रित होती है । इनकी विजय के लिए अनुप्रेक्षाओं का चिंतन किया जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 5. 243-244, 11. 100-102, 36.116, 128, 42. 126-127, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_2#184|पद्मपुराण -2. 184]], 22. 169 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
सहनशक्ति की प्रबलता से सही जाने वाली एवं मोक्षमार्ग में आने वाली बाधाएँ । इन्हीं के कारण सम्यक्चारित्र को पाकर भी तपस्वी भ्रष्ट हो जाते हैं । ये बाधायें बाईस होती हैं । वे हैं― क्षुधा, पिपासा (तृषा), शीत, उष्ण, दंश-मशक, नाग्न्य, अरति, स्त्री, चर्या, शय्या, निषद्या, आक्रोश, वध, याचना, अलाभ, अदर्शन, रोग, तृणस्पर्श, प्रज्ञा, अज्ञान, मल और सत्कार-पुरस्कार । मार्ग से च्युत न होने तथा कर्मों की निर्जरा हेतु इनको सहन किया जाता है । इनकी विजय पर ही महात्माओं की सिद्धि आश्रित होती है । इनकी विजय के लिए अनुप्रेक्षाओं का चिंतन किया जाता है । महापुराण 5. 243-244, 11. 100-102, 36.116, 128, 42. 126-127, पद्मपुराण -2. 184, 22. 169