रामल्य: Difference between revisions
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Latest revision as of 09:14, 17 August 2023
आचार्य भद्रबाहु प्रथम (पंचम श्रुतकेवली) के शिष्य थे। 12 वर्षीय दुर्भिक्ष के अवसर पर आपने उनकी बात को अस्वीकार करके दक्षिण की ओर विहार न किया और उज्जैनी में ही रह गये। दुर्भिक्ष आने पर उनके संघ में शिथिलाचार आया और वे ‘अर्ध फालक’ (देखें श्वेतांबर ) बन गये। भद्रबाहु स्वामी की दक्षिण में समाधि हो गयी, परंतु दुर्भिक्ष के समाप्त होने पर उनके शिष्य विशाखाचार्य आदि लौटकर पुन: उज्जैनी में आये। उस समय आप (स्थूल भद्र) ने अपने संघ को शिथिलाचार छोड़ पुन: शुद्धाचरण अपनाने को कहा। इस पर संघ ने रुष्ट होकर इन्हें जान से मार दिया। ये एक व्यंतर बनकर संघ पर उपद्रव करने लगे। जिसे शांत करने के लिए संघ ने कुलदेवता के रूप में इनकी पूजा करनी प्रारंभ कर दी। इनके अपर नाम स्थूलाचार्य व रामल्य भी थे। इस कथा के अनुसार इनका समय भद्रबाहु तृतीय से लेकर विशाखाचार्य के कुछ काल पश्चात् तक वी.नि.133-167 (ई.पू.394-360) आता है।-देखें श्वेतांबर ।