सर्वघाती स्पर्धक: Difference between revisions
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<p class="HindiText">संसार अवस्था में देशघाति व सर्वघाति प्रकृतियों का जघन्य से उत्कृष्ट पर्यंत जो अनुभाग रहता है, उससे युक्त स्पर्द्धक पूर्वस्पर्धक कहलाते हैं।-जैसे मोहनीय में सम्यक् प्रकृति का अनुभाग केवल देशघाति होने के कारण जघन्य लता भाग से दारु भाग के असंख्यात पर्यंत ही है। तातै ऊपर मिश्र मोहनीय का अनुभाग जघन्य से उत्कृष्ट पर्यंत मध्यम दारु भावरूप ही रहता है। और इससे भी ऊपर मिथ्यात्व का अनुभाग अपर दारु से लेकर उत्कृष्ट शैल भाग तक रहता है। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय की केवल 3 व 4 से रहित संज्वलन चतुष्क, नव नोकषाय, पाँच अंतराय, इन 25 प्रकृतियों का अनुभाग जघन्य से लेकर उत्कृष्ट देशघाती पर्यंत तो लता भाग से दारु के असंख्यात भाग पर्यंत और जघन्य सर्वघाती से लेकर उत्कृष्ट सर्वघाती पर्यंत दारु के असंख्यात भाग से उत्कृष्ट शैल भाग पर्यंत वर्तै है। केवल ज्ञानावरण, केवल दर्शनावरण, पाँच निद्रा और प्रत्याख्यान, अप्रत्याख्यान, अनंतानुबंधी की 12 इन 19 सर्वघाती प्रकृतियों का अनुभाग जघन्य सर्वघाती से उत्कृष्ट सर्वघाती पर्यंत दारु के असंख्यात भाग से उत्कृष्ट शैल भाग पर्यंत है। वेदनीय, आयु, नाम व गोत्र इन चार अघातिया का अनुभाग जघन्य देशघाती से लेकर उत्कृष्ट पर्यंत अथवा सर्वघाती जघन्य से लेकर उत्कृष्ट पर्यंत परस्पर समान जानना। </p> | <p class="HindiText">संसार अवस्था में देशघाति व '''सर्वघाति''' प्रकृतियों का जघन्य से उत्कृष्ट पर्यंत जो अनुभाग रहता है, उससे युक्त स्पर्द्धक पूर्वस्पर्धक कहलाते हैं।-जैसे मोहनीय में सम्यक् प्रकृति का अनुभाग केवल देशघाति होने के कारण जघन्य लता भाग से दारु भाग के असंख्यात पर्यंत ही है। तातै ऊपर मिश्र मोहनीय का अनुभाग जघन्य से उत्कृष्ट पर्यंत मध्यम दारु भावरूप ही रहता है। और इससे भी ऊपर मिथ्यात्व का अनुभाग अपर दारु से लेकर उत्कृष्ट शैल भाग तक रहता है। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय की केवल 3 व 4 से रहित संज्वलन चतुष्क, नव नोकषाय, पाँच अंतराय, इन 25 प्रकृतियों का अनुभाग जघन्य से लेकर उत्कृष्ट देशघाती पर्यंत तो लता भाग से दारु के असंख्यात भाग पर्यंत और जघन्य सर्वघाती से लेकर उत्कृष्ट सर्वघाती पर्यंत दारु के असंख्यात भाग से उत्कृष्ट शैल भाग पर्यंत वर्तै है। केवल ज्ञानावरण, केवल दर्शनावरण, पाँच निद्रा और प्रत्याख्यान, अप्रत्याख्यान, अनंतानुबंधी की 12 इन 19 सर्वघाती प्रकृतियों का अनुभाग जघन्य सर्वघाती से उत्कृष्ट सर्वघाती पर्यंत दारु के असंख्यात भाग से उत्कृष्ट शैल भाग पर्यंत है। वेदनीय, आयु, नाम व गोत्र इन चार अघातिया का अनुभाग जघन्य देशघाती से लेकर उत्कृष्ट पर्यंत अथवा सर्वघाती जघन्य से लेकर उत्कृष्ट पर्यंत परस्पर समान जानना। </p> | ||
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Latest revision as of 16:20, 20 February 2024
क्षपणासार/ भाषा./465/540/16
संसार अवस्था में देशघाति व सर्वघाति प्रकृतियों का जघन्य से उत्कृष्ट पर्यंत जो अनुभाग रहता है, उससे युक्त स्पर्द्धक पूर्वस्पर्धक कहलाते हैं।-जैसे मोहनीय में सम्यक् प्रकृति का अनुभाग केवल देशघाति होने के कारण जघन्य लता भाग से दारु भाग के असंख्यात पर्यंत ही है। तातै ऊपर मिश्र मोहनीय का अनुभाग जघन्य से उत्कृष्ट पर्यंत मध्यम दारु भावरूप ही रहता है। और इससे भी ऊपर मिथ्यात्व का अनुभाग अपर दारु से लेकर उत्कृष्ट शैल भाग तक रहता है। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय की केवल 3 व 4 से रहित संज्वलन चतुष्क, नव नोकषाय, पाँच अंतराय, इन 25 प्रकृतियों का अनुभाग जघन्य से लेकर उत्कृष्ट देशघाती पर्यंत तो लता भाग से दारु के असंख्यात भाग पर्यंत और जघन्य सर्वघाती से लेकर उत्कृष्ट सर्वघाती पर्यंत दारु के असंख्यात भाग से उत्कृष्ट शैल भाग पर्यंत वर्तै है। केवल ज्ञानावरण, केवल दर्शनावरण, पाँच निद्रा और प्रत्याख्यान, अप्रत्याख्यान, अनंतानुबंधी की 12 इन 19 सर्वघाती प्रकृतियों का अनुभाग जघन्य सर्वघाती से उत्कृष्ट सर्वघाती पर्यंत दारु के असंख्यात भाग से उत्कृष्ट शैल भाग पर्यंत है। वेदनीय, आयु, नाम व गोत्र इन चार अघातिया का अनुभाग जघन्य देशघाती से लेकर उत्कृष्ट पर्यंत अथवा सर्वघाती जघन्य से लेकर उत्कृष्ट पर्यंत परस्पर समान जानना।
अधिक जानकारी के लिये देखें स्पर्धक ।