वल्कल: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
(8 intermediate revisions by 5 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
< | | ||
== सिद्धांतकोष से == | |||
<div class="HindiText"> एक अज्ञानवादी </div> | |||
<span class="GRef">धवला पुस्तक 1/1,1,2/108/2</span> <span class="PrakritText">शाकल्य-वल्कल-कुथुमि-सात्यमुग्रि-नारायण-कण्व-माध्यंदिन-मोद-पैप्पलाद-बादरायण-स्वेष्टकृदैतिकायन-वसु-जैमिन्यादीनामज्ञानिकदृष्टीनां सप्तषष्टिः। <br /> | |||
<span class="HindiText">= दृष्टिवाद अंग में - शाकल्य, '''वल्कल''', कुथुमि, सात्यमुग्रि, नारायण, कण्व, माध्यंदिन, मोद, पैप्पलाद, बादरायण, स्वेष्टकृत्, ऐतिकायन, वसु और जैमिनि आदि अज्ञानवादियों के सड़सठ मतों का.....वर्णन और निराकरण किया गया है। <br /> | |||
[[ | <div class="HindiText">- देखें [[ अज्ञानवाद ]]। </div> | ||
[[Category:व]] | <noinclude> | ||
[[ वलीक | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ वल्गु | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: व]] | |||
== पुराणकोष से == | |||
<div class="HindiText"> <p class="HindiText"> वृक्षों की डाल । तापस और जटाधारी साधु वस्त्र के रूप में इसका उपयोग करते थे । तीर्थंकर वृषभदेव के साथ दीक्षित कच्छ और महाकच्छ राजाओं ने वृषभदेव के समान निर्दोष वृत्ति धारण करने में असमर्थ हो जाने पर वल्कल पहिनना आरंभ कर दिया था । <span class="GRef"> महापुराण 1. 7 </span></p> | |||
</div> | |||
<noinclude> | |||
[[ वलीक | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ वल्गु | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: पुराण-कोष]] | |||
[[Category: व]] | |||
[[Category: द्रव्यानुयोग]] |
Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
एक अज्ञानवादी
धवला पुस्तक 1/1,1,2/108/2 शाकल्य-वल्कल-कुथुमि-सात्यमुग्रि-नारायण-कण्व-माध्यंदिन-मोद-पैप्पलाद-बादरायण-स्वेष्टकृदैतिकायन-वसु-जैमिन्यादीनामज्ञानिकदृष्टीनां सप्तषष्टिः।
= दृष्टिवाद अंग में - शाकल्य, वल्कल, कुथुमि, सात्यमुग्रि, नारायण, कण्व, माध्यंदिन, मोद, पैप्पलाद, बादरायण, स्वेष्टकृत्, ऐतिकायन, वसु और जैमिनि आदि अज्ञानवादियों के सड़सठ मतों का.....वर्णन और निराकरण किया गया है।
- देखें अज्ञानवाद ।
पुराणकोष से
वृक्षों की डाल । तापस और जटाधारी साधु वस्त्र के रूप में इसका उपयोग करते थे । तीर्थंकर वृषभदेव के साथ दीक्षित कच्छ और महाकच्छ राजाओं ने वृषभदेव के समान निर्दोष वृत्ति धारण करने में असमर्थ हो जाने पर वल्कल पहिनना आरंभ कर दिया था । महापुराण 1. 7