विष्टा: Difference between revisions
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<p class="HindiText"><b>1. औदारिक शरीर में विष्ठा का प्रमाण</b></p> | |||
<span class="GRef">भगवती आराधना / मूल या टीका गाथा 1035</span><p class="PrakritText">मुत्तं आढयमेत्तं उच्चारस्स य हवंति छप्पच्छा। वीसं णहाणि दंता बत्तीसं होंति पगदीए ।1035।</p> | |||
<p class="HindiText">= मूत्र एक आढक, उच्चार अर्थात् '''विष्ठा''' 6 प्रस्थ, नख 20 और दांत 32 हैं। स्वभावतः शरीरमें इन अवयवोंका प्रमाण कहा है।</p> | |||
</ | <p class="HindiText">–देखें [[ औदारिक#1.7 | औदारिक - 1.7]]। </p> | ||
<p class="HindiText"><b>2. मल मूत्र क्षेपण विधि</b> </p> | |||
<p><span class="GRef">मूलाचार/15,321-323</span> <span class="PrakritText">एगंते अच्चित्ते दूरे गूढे विसालमविरोहे। उच्चारादिच्चओ पदिठावणिया हवे समिदी।15। वणदाहकिसिमसिकदे थंडिल्लेणुपरोधे वित्थिण्णे। अवगदजंतु विवित्ते उच्चारादी विसज्जेज्जो।321। उच्चारं पस्सवण्णं खेलं सिंघाणयादियं दव्वं। अच्चितभूमिदेसे पडिलेहित्ता विसज्जेज्जो।322। रादो दु पमज्जित्ता पण्णसमणपेक्खिदम्मि ओगासे। आसंकविसुद्धीए अपहत्थगफासणं कुज्जा।323।</span> =<span class="HindiText">1. एकांतस्थान, अचित्तस्थान दूर, छिपा हुआ, बिल तथा छेदरहित चौड़ा, और जिसकी निंदा व विरोध न करे ऐसे स्थान में मूत्र, '''विष्ठा''' आदि देह के मल का क्षेपण करना प्रतिष्ठापना समिति कही गयी है।15। । 2. दावाग्नि से दग्धप्रदेश, हलकर जुता हुआ प्रदेश, मसान भूमि का प्रदेश, खार सहित भूमि, लोग जहाँ रोकें नहीं, ऐसा स्थान, विशाल स्थान, त्रस जीवोंकर रहित स्थान, जनरहित स्थान - ऐसी जगह मूत्रादि का त्याग करे।321। 3. '''विष्ठा''', मूत्र, कफ, नाक का मैल, आदि को हरे तृण आदि से रहित प्रासुक भूमि में अच्छी तरह देखकर निक्षेपण करे।322। रात्रि में आचार्य के द्वारा देखे हुए स्थान को आप भी देखकर मूत्रादि का क्षेपण करे। यदि वहाँ सूक्ष्म जीवों की आशंका हो तो आशंका की विशुद्धि के लिए कोमल पीछी को लेकर हथेली से उस जगह को देखे।323। </span></p> | |||
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1. औदारिक शरीर में विष्ठा का प्रमाण
भगवती आराधना / मूल या टीका गाथा 1035
मुत्तं आढयमेत्तं उच्चारस्स य हवंति छप्पच्छा। वीसं णहाणि दंता बत्तीसं होंति पगदीए ।1035।
= मूत्र एक आढक, उच्चार अर्थात् विष्ठा 6 प्रस्थ, नख 20 और दांत 32 हैं। स्वभावतः शरीरमें इन अवयवोंका प्रमाण कहा है।
–देखें औदारिक - 1.7।
2. मल मूत्र क्षेपण विधि
मूलाचार/15,321-323 एगंते अच्चित्ते दूरे गूढे विसालमविरोहे। उच्चारादिच्चओ पदिठावणिया हवे समिदी।15। वणदाहकिसिमसिकदे थंडिल्लेणुपरोधे वित्थिण्णे। अवगदजंतु विवित्ते उच्चारादी विसज्जेज्जो।321। उच्चारं पस्सवण्णं खेलं सिंघाणयादियं दव्वं। अच्चितभूमिदेसे पडिलेहित्ता विसज्जेज्जो।322। रादो दु पमज्जित्ता पण्णसमणपेक्खिदम्मि ओगासे। आसंकविसुद्धीए अपहत्थगफासणं कुज्जा।323। =1. एकांतस्थान, अचित्तस्थान दूर, छिपा हुआ, बिल तथा छेदरहित चौड़ा, और जिसकी निंदा व विरोध न करे ऐसे स्थान में मूत्र, विष्ठा आदि देह के मल का क्षेपण करना प्रतिष्ठापना समिति कही गयी है।15। । 2. दावाग्नि से दग्धप्रदेश, हलकर जुता हुआ प्रदेश, मसान भूमि का प्रदेश, खार सहित भूमि, लोग जहाँ रोकें नहीं, ऐसा स्थान, विशाल स्थान, त्रस जीवोंकर रहित स्थान, जनरहित स्थान - ऐसी जगह मूत्रादि का त्याग करे।321। 3. विष्ठा, मूत्र, कफ, नाक का मैल, आदि को हरे तृण आदि से रहित प्रासुक भूमि में अच्छी तरह देखकर निक्षेपण करे।322। रात्रि में आचार्य के द्वारा देखे हुए स्थान को आप भी देखकर मूत्रादि का क्षेपण करे। यदि वहाँ सूक्ष्म जीवों की आशंका हो तो आशंका की विशुद्धि के लिए कोमल पीछी को लेकर हथेली से उस जगह को देखे।323।
–देखें समिति - 1.प्रतिष्ठापना।