व्याघात: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
ParidhiSethi (talk | contribs) No edit summary |
||
(7 intermediate revisions by 3 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> | <p><span class="GRef"> धवला 7/2, 2, 97/151/8 </span><span class="PrakritText">अथवा कायजोगद्धाखएण मणजोगे आगदे विदियसमए वाघादिदस्स पुणरवि कायजोगो चेव आगदो। </span><br /> | ||
<span class="GRef"> धवला 7/2, 2, 129/160/10 </span><span class="PrakritText">कोधस्स वाघादेण एगसमओ णत्थि, वाघादिदे वि कोधस्सेव समुप्पत्तीदो। </span>= <span class="HindiText">अथवा काययोग के काल के क्षय से मनोयोग को प्राप्त होकर द्वितीय समय में व्याघात (मरण) को प्राप्त हुए उसको फिर भी काययोग ही प्राप्त हुआ। क्रोध के व्याघात से एक समय नहीं पाया जाता, क्योंकि व्याघात (मरण) को प्राप्त होने पर भी पुनः क्रोध की ही उत्पत्ति होती है। <br /> | |||
<span class="GRef"> लब्धिसार/भाषा/60/92/1 </span> जहाँ स्थिति कांडकघत होइ सो व्याघात कहिए।–(विशेष देखें [[ अपकर्षण#4 | अपकर्षण - 4]])। </span></p> | |||
<noinclude> | |||
[[ | [[ व्याख्याप्रज्ञप्ति | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[Category:व]] | [[ व्याघ्रपुर | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | |||
[[Category: व]] | |||
[[Category: करणानुयोग]] |
Latest revision as of 18:43, 19 September 2022
धवला 7/2, 2, 97/151/8 अथवा कायजोगद्धाखएण मणजोगे आगदे विदियसमए वाघादिदस्स पुणरवि कायजोगो चेव आगदो।
धवला 7/2, 2, 129/160/10 कोधस्स वाघादेण एगसमओ णत्थि, वाघादिदे वि कोधस्सेव समुप्पत्तीदो। = अथवा काययोग के काल के क्षय से मनोयोग को प्राप्त होकर द्वितीय समय में व्याघात (मरण) को प्राप्त हुए उसको फिर भी काययोग ही प्राप्त हुआ। क्रोध के व्याघात से एक समय नहीं पाया जाता, क्योंकि व्याघात (मरण) को प्राप्त होने पर भी पुनः क्रोध की ही उत्पत्ति होती है।
लब्धिसार/भाषा/60/92/1 जहाँ स्थिति कांडकघत होइ सो व्याघात कहिए।–(विशेष देखें अपकर्षण - 4)।