वीतराग चारित्र: Difference between revisions
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<span class="GRef"> द्रव्यसंग्रह/45/194 </span><span class="SanskritText">वीतरागचारित्रस्य साधकं सरागचारित्रं प्रतिपादयति।</span>...<span class="PrakritGatha">"असुहादो विणिवत्ती सुहे पवित्ती य जाण चारित्त। वदसमिदिगुत्तिरूवं ववहारणयादु जिणभणियं।45।</span>=<span class="HindiText">'''वीतराग चारित्र''' के परंपरा साधक सराग चारित्र को कहते हैं–जो अशुभ कार्य से निवृत्त होना और शुभकार्य में प्रवृत्त होना है, उसको चारित्र जानना चाहिए, व्यवहार नय से उसको व्रत, समिति, गुप्ति स्वरूप कहा है। </span><br /> | |||
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Latest revision as of 15:17, 31 January 2023
द्रव्यसंग्रह/45/194 वीतरागचारित्रस्य साधकं सरागचारित्रं प्रतिपादयति।..."असुहादो विणिवत्ती सुहे पवित्ती य जाण चारित्त। वदसमिदिगुत्तिरूवं ववहारणयादु जिणभणियं।45।=वीतराग चारित्र के परंपरा साधक सराग चारित्र को कहते हैं–जो अशुभ कार्य से निवृत्त होना और शुभकार्य में प्रवृत्त होना है, उसको चारित्र जानना चाहिए, व्यवहार नय से उसको व्रत, समिति, गुप्ति स्वरूप कहा है।
देखें चारित्र - 1।