प्रतिदृष्टांतसमा: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
(8 intermediate revisions by 3 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> | <p><span class="GRef"> न्यायदर्शन सूत्र/ मू.व टी./5/1/9/291</span> <span class="SanskritText">दृष्टांतस्य कारणानपदेशात् प्रत्यवस्थानाच्च प्रतिदृष्टांतेन प्रसंग प्रतिदृष्टांतसमौ ।9। क्रियाहेतुगुणयोगी क्रियावान् लोष्ट इति हेतुर्नापदिश्यते न च हेतुमंतरेण सिद्धिरस्तीति प्रतिदृष्टांतेन प्रत्यवस्थानं प्रतिदृष्टांतसमः । क्रियावानात्मा क्रियाहेतुगुणयोगाद् लोष्टवदित्युक्ते प्रतिदृष्टांत उपादीयते क्रियाहेतुगुणयुक्तमाकाशं निष्क्रियं दृष्टमिति । कः पुनराकाशस्य क्रियाहेतुर्गुणो वायुना संयोगः संस्कारापेक्षः वायुवनस्पतिसंयोगवदिति ।</span> = <span class="HindiText">वादी के द्वारा कहे गये दृष्टांत के प्रतिकूल दृष्टांत स्वरूप करके प्रतिवादी द्वारा जो दूषण उठाया जाता है, वह प्रतिदृष्टांतसमा जाति इष्ट की गयी है । इसका उदाहरण यों है कि (क्रियावत्त्व गुण के कारण आत्मा क्रियावाला है जैसे कि लोष्ट) इस ही आत्मा के क्रियावत्त्व साधने में प्रयुक्त किये गये दृष्टांत के प्रतिकूल दृष्टांत करके दूसरा प्रतिवादी प्रत्यवस्थान देता है कि क्रिया के हेतुभूतगुण के (वायु के साथ) युक्त हो रहा आकाश तो निष्क्रिय देखा जाता है । उस ही के समान आत्मा भी क्रिया रहित हो जाओ ।यदि यहाँ कोई प्रश्न करे कि क्रिया का हेतु आकाश का कौन सा गुण है ? प्रतिवादी की ओर से उत्तर यों है कि वायु के साथ आकाश का जो संयोग है, वह क्रिया का कारण गुण है । जैसे - कि वेग नामक संस्कार की अपेक्षा रखता हुआ, वृक्ष में वायु का संयोग क्रिया का कारण हो रहा है । अतः आकाश के समान आत्मा क्रिया हेतुगुण के सद्भाव होने पर भी क्रियारहित हो जाओ । <span class="GRef">( श्लोकवार्तिक 4/ न्या., 364/489/1 </span> में इस पर चर्चा) ।</span></p> | ||
[[प्रतितंत्र सिद्धांत | | <noinclude> | ||
[[ प्रतितंत्र सिद्धांत | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[Category:प]] | [[ प्रतिनंदी | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | |||
[[Category: प]] | |||
[[Category: द्रव्यानुयोग]] |
Latest revision as of 22:21, 17 November 2023
न्यायदर्शन सूत्र/ मू.व टी./5/1/9/291 दृष्टांतस्य कारणानपदेशात् प्रत्यवस्थानाच्च प्रतिदृष्टांतेन प्रसंग प्रतिदृष्टांतसमौ ।9। क्रियाहेतुगुणयोगी क्रियावान् लोष्ट इति हेतुर्नापदिश्यते न च हेतुमंतरेण सिद्धिरस्तीति प्रतिदृष्टांतेन प्रत्यवस्थानं प्रतिदृष्टांतसमः । क्रियावानात्मा क्रियाहेतुगुणयोगाद् लोष्टवदित्युक्ते प्रतिदृष्टांत उपादीयते क्रियाहेतुगुणयुक्तमाकाशं निष्क्रियं दृष्टमिति । कः पुनराकाशस्य क्रियाहेतुर्गुणो वायुना संयोगः संस्कारापेक्षः वायुवनस्पतिसंयोगवदिति । = वादी के द्वारा कहे गये दृष्टांत के प्रतिकूल दृष्टांत स्वरूप करके प्रतिवादी द्वारा जो दूषण उठाया जाता है, वह प्रतिदृष्टांतसमा जाति इष्ट की गयी है । इसका उदाहरण यों है कि (क्रियावत्त्व गुण के कारण आत्मा क्रियावाला है जैसे कि लोष्ट) इस ही आत्मा के क्रियावत्त्व साधने में प्रयुक्त किये गये दृष्टांत के प्रतिकूल दृष्टांत करके दूसरा प्रतिवादी प्रत्यवस्थान देता है कि क्रिया के हेतुभूतगुण के (वायु के साथ) युक्त हो रहा आकाश तो निष्क्रिय देखा जाता है । उस ही के समान आत्मा भी क्रिया रहित हो जाओ ।यदि यहाँ कोई प्रश्न करे कि क्रिया का हेतु आकाश का कौन सा गुण है ? प्रतिवादी की ओर से उत्तर यों है कि वायु के साथ आकाश का जो संयोग है, वह क्रिया का कारण गुण है । जैसे - कि वेग नामक संस्कार की अपेक्षा रखता हुआ, वृक्ष में वायु का संयोग क्रिया का कारण हो रहा है । अतः आकाश के समान आत्मा क्रिया हेतुगुण के सद्भाव होने पर भी क्रियारहित हो जाओ । ( श्लोकवार्तिक 4/ न्या., 364/489/1 में इस पर चर्चा) ।