अविरत सम्यग्दृष्टि: Difference between revisions
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<span class="GRef"> राजवार्तिक/9/1/15/589/26 </span><span class="SanskritText">औपशमिकेन क्षायोपशमिकेन क्षायिकेण वा सम्यक्त्वेन समन्वित: चारित्रमोहोदयात् अत्यंतविरतिपरिणामप्रवणोऽसंयतसम्यग्दृष्टिरिति व्यपदिश्यते।</span> | |||
=<span class="HindiText">औपशमिक, क्षायोपशमिक और क्षायिक इन तीनों में से किसी भी सम्यक्त्व से समन्वित तथा चारित्रमोह के उदय से जिसके परिणाम अत्यंत अविरतिरूप रहते हैं, उसको '''असंयत सम्यग्दृष्टि''' कहा जाता है।</p></br> | |||
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राजवार्तिक/9/1/15/589/26 औपशमिकेन क्षायोपशमिकेन क्षायिकेण वा सम्यक्त्वेन समन्वित: चारित्रमोहोदयात् अत्यंतविरतिपरिणामप्रवणोऽसंयतसम्यग्दृष्टिरिति व्यपदिश्यते।
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औपशमिक, क्षायोपशमिक और क्षायिक इन तीनों में से किसी भी सम्यक्त्व से समन्वित तथा चारित्रमोह के उदय से जिसके परिणाम अत्यंत अविरतिरूप रहते हैं, उसको असंयत सम्यग्दृष्टि कहा जाता है।विशेष जानकारी के लिए देखें सम्यग्दर्शन - 5