स्वानुभव: Difference between revisions
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<span class="GRef">प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / परिशिष्ट/प्रारंभ</span><p class="SanskritText">-ननु कोऽयमात्मा कथं चावाप्यत इति चेत्। आत्मा हि तावच्चैतंयसामांयव्याप्तानंतधर्माधिष्ठात्रेकं द्रव्यमनंतधर्मव्यापकानंतनयव्याप्येकश्रुतक्षानलक्षणपूर्वकस्वानुभवप्रमीयमाणत्वात्। </p> | |||
<p class="HindiText">= <b>प्रश्न</b> - यह आत्मा कौन है और कैसे प्राप्त किया जाता है? <br> | |||
<b>उत्तर</b> - आत्मा वास्तव में चैतन्यसामान्य से व्याप्त अनंत धर्मों का अधिष्ठाता एक द्रव्य है, क्योंकि अनंत धर्मों में व्याप्त होने वाला जो एक श्रुतज्ञानस्वरूप प्रमाण है, उस प्रमाणपूर्वक '''स्वानुभव''' से प्रमेय होता है।</p><br> | |||
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प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / परिशिष्ट/प्रारंभ
-ननु कोऽयमात्मा कथं चावाप्यत इति चेत्। आत्मा हि तावच्चैतंयसामांयव्याप्तानंतधर्माधिष्ठात्रेकं द्रव्यमनंतधर्मव्यापकानंतनयव्याप्येकश्रुतक्षानलक्षणपूर्वकस्वानुभवप्रमीयमाणत्वात्।
= प्रश्न - यह आत्मा कौन है और कैसे प्राप्त किया जाता है?
उत्तर - आत्मा वास्तव में चैतन्यसामान्य से व्याप्त अनंत धर्मों का अधिष्ठाता एक द्रव्य है, क्योंकि अनंत धर्मों में व्याप्त होने वाला जो एक श्रुतज्ञानस्वरूप प्रमाण है, उस प्रमाणपूर्वक स्वानुभव से प्रमेय होता है।
अधिक जानकारी के लिये देखें अनुभव ।