स्वयंभूरमण: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) मध्यलोक का अंतिम सागर । इसमें जलचर जीव होते हैं । इनका जल सामान्य जल जैसा होता है । मेरु पर्वत की अर्ध चौड़ाई से इस सागर के अंत तक अर्ध राजु की दूरी है । इस अर्ध राजू के अर्ध भाग में आधा जंबूद्वीप और सागर तथा इस समुद्र के पचहत्तर हजार योजन अवशिष्ट भाग है । <span class="GRef"> महापुराण 7.97, 16. 215, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#626|हरिवंशपुराण - 5.626]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#629|629]], [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#632|632]], [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#635|635-636]] </span></p> | |||
<p id="2" class="HindiText">(2) मध्यलोक का अंतिम द्वीप । <span class="GRef"> महापुराण 7.97, 16.215, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#626|हरिवंशपुराण - 5.626]], [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#633|633]], [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_10#116|60.116]] </span></p> | |||
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Latest revision as of 15:22, 28 November 2023
सिद्धांतकोष से
- मध्यलोक का अंतिम सागर व द्वीप-देखें लोक - 4.8।
- स्वयंभूरमण द्वीप व समुद्र का लोक में अवस्थान व विस्तार-देखें लोक - 2.11।
- इस द्वीप व समुद्र में काल वर्तन आदि संबंधी विशेषताएँ-देखें काल - 4.15।
पुराणकोष से
(1) मध्यलोक का अंतिम सागर । इसमें जलचर जीव होते हैं । इनका जल सामान्य जल जैसा होता है । मेरु पर्वत की अर्ध चौड़ाई से इस सागर के अंत तक अर्ध राजु की दूरी है । इस अर्ध राजू के अर्ध भाग में आधा जंबूद्वीप और सागर तथा इस समुद्र के पचहत्तर हजार योजन अवशिष्ट भाग है । महापुराण 7.97, 16. 215, हरिवंशपुराण - 5.626,629, 632, 635-636
(2) मध्यलोक का अंतिम द्वीप । महापुराण 7.97, 16.215, हरिवंशपुराण - 5.626, 633, 60.116