शुद्धनय: Difference between revisions
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Latest revision as of 14:35, 2 March 2024
समयसार/14 जो पस्सदि अप्पाणं अबद्धपुट्ठं अणण्णयं णियदं। अविसेसमसंजुत्तं तं सुद्धणयं वियाणीहि।14। =जो नय आत्मा को बंध रहित और पर के स्पर्श से रहित, अन्यत्वरहित, चलाचलता रहित, विशेष रहित, अन्य के संयोग से रहित ऐसे पाँच भावरूप से देखता है, उसे हे शिष्य ! तू शुद्धनय जान।14।
अधिक जानकारी के लिये देखें नय - I.5.4।