सापेक्ष: Difference between revisions
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Latest revision as of 14:45, 22 February 2024
नयचक्र बृहद्/250 अवरोप्परसावेक्खं णयविसयं अह पमाण विसयं वा। तं सावेक्खं तत्तं णिरवेक्खं ताण विवरीयं। = प्रमाण व नय के विषय परस्पर एक-दूसरे की अपेक्षा करके हैं अथवा एक नय का विषय दूसरी नय के विषय की अपेक्षा करता है, इसी को सापेक्ष तत्त्व कहते हैं। निरपेक्ष तत्त्व इससे विपरीत है।
सापेक्षता को विस्तार के समझने के लिये देखें स्याद्वाद