Jain dictionary: Difference between revisions
From जैनकोष
JainTestUser (talk | contribs) No edit summary |
No edit summary |
||
(22 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
{{DISPLAYTITLE:जेनैन्द्र सिद्धांत कोष - जैन डिक्शनरी}} | |||
'''क्षुल्लक श्री जिनेन्द्रजी वर्णी''' द्वारा रचित '''जैनेन्द्र सिद्धांत कोष''' में जैन आगम के सारे शब्दों के अर्थ सन्दर्भ सहित आप यहाँ देख सकते हैं। प्रत्येक वर्ण के शब्दों की सूची देखने के लिए किसी भी वर्ण पर क्लिक करें और देखें विशाल जैन साहित्य को। | |||
<div class="dictionary"> | |||
<div class="dictionary_top"> | |||
<div class="dictionaryFirst"> | |||
<span>[[:Category:अ | अ]]</span> | |||
<span>[[:Category:आ | आ]]</span> | |||
<span>[[:Category:इ | इ]]</span> | |||
<span>[[:Category:ई | ई]]</span> | |||
<span>[[:Category:उ | उ]]</span> | |||
<span>[[:Category:ऊ | ऊ]]</span> | |||
<span>[[:Category:ए | ए]]</span> | |||
<span>[[:Category:ऐ | ऐ]]</span> | |||
<span>[[:Category:ओ | ओ]]</span> | |||
<span>[[:Category:औ | औ]]</span> | |||
<span>[[:Category:ऋ | ऋ]]</span> | |||
</div> | |||
<div class="dictionaryFirst even_box_layout"> | |||
<span>[[:Category:क | क]]</span> | |||
<span>[[:Category:ख | ख]]</span> | |||
<span>[[:Category:ग | ग]]</span> | |||
<span>[[:Category:घ | घ]]</span> | |||
<span>[[:Category:च | च]]</span> | |||
<span>[[:Category:छ | छ]]</span> | |||
<span>[[:Category:ज | ज]]</span> | |||
<span>[[:Category:झ | झ]]</span> | |||
</div> | |||
</div> | |||
<div class="dictionary_bottom"> | |||
<div class="dictionaryBottomSection"> | |||
<span>[[:Category:ट | ट]]</span> | |||
<span>[[:Category:ठ | ठ]]</span> | |||
<span>[[:Category:ड | ड]]</span> | |||
<span>[[:Category:ढ | ढ]]</span> | |||
<span>[[:Category:ण | ण]]</span> | |||
<span>[[:Category:त | त]]</span> | |||
<span>[[:Category:थ | थ]]</span> | |||
<span>[[:Category:द | द]]</span> | |||
<span>[[:Category:ध | ध]]</span> | |||
<span>[[:Category:न | न]]</span> | |||
</div> | |||
<div class="dictionaryBottomSection even_box_layout"> | |||
<span> [[:Category:प | प]]</span> | |||
<span>[[:Category:फ | फ]]</span> | |||
<span>[[:Category:ब | ब]]</span> | |||
<span>[[:Category:भ | भ]]</span> | |||
<span>[[:Category:म | म]]</span> | |||
<span> [[:Category:य | य]]</span> | |||
<span>[[:Category:र | र]]</span> | |||
<span>[[:Category:ल | ल]]</span> | |||
<span>[[:Category:व | व]]</span> | |||
</div> | |||
<div class="dictionaryBottomSection"> | |||
<span>[[:Category:श | श]]</span> | |||
<span>[[:Category:ष | ष]]</span> | |||
<span>[[:Category:स | स]]</span> | |||
<span>[[:Category:ह | ह]]</span> | |||
<span>[[:Category:क्ष | क्ष]]</span> | |||
<span> [[:Category:ज्ञ | ज्ञ]]</span> | |||
</div> | |||
</div> | |||
</div> | </div> | ||
{{:जैनेन्द्र_सिद्धान्त_कोश}} | |||
==[[अप्राप्त शब्द]]== | |||
जो शब्द कोष में उपलब्ध हैं, परन्तु इस विकी पर उपलब्ध नहीं हैं उनकी यह सूची है | कृपया आपको जो शब्द अप्राप्त मिलते हैं, उन्हें यहाँ जोड़ें ताकि उन्हें डाला जा सके | | |||
मनःपर्यय | |||
ईहा | |||
{{:अप्राप्त शब्द}} | |||
==[[अधूरे शब्द]]== | |||
जिन शब्दों की जानकारी पूर्ण रूप से इस विकी पर उपलब्ध नहीं है, उनकी यह सूची है | कृपया आपको जो शब्द अधूरे मिलते हैं, उन्हें यहाँ जोड़ें ताकि उन्हें पूर्ण किया जा सके | | |||
* कृतान्तवक्त्र - इसके पूर्व भव की जानकारी पद्मपुराण सर्ग ९१ से डालनी है | | |||
* शत्रुघ्न - इसके पूर्व भव की जानकारी पद्मपुराण सर्ग ९१ से डालनी है | | |||
* [[प्रत्यय ]] - 4.4 और 5 के टेबल नहीं डाले है | पुस्तक का पृष्ठ: 130 | |||
* [[गणित]] - II से मिस्सिंग है | |
Latest revision as of 21:04, 10 June 2024
क्षुल्लक श्री जिनेन्द्रजी वर्णी द्वारा रचित जैनेन्द्र सिद्धांत कोष में जैन आगम के सारे शब्दों के अर्थ सन्दर्भ सहित आप यहाँ देख सकते हैं। प्रत्येक वर्ण के शब्दों की सूची देखने के लिए किसी भी वर्ण पर क्लिक करें और देखें विशाल जैन साहित्य को।
(क्षु. जिनेन्द्र वर्णी)
व्यापिनीं सर्वलोकेषु सर्वतत्त्वप्रकाशिनीम्।
अनेकान्तनयोपेतां पक्षपातविनाशिनीम् ।। १ ।।
अज्ञानतमसंहर्त्रीं मोह-शोकनिवारिणीम्।
देह्यद्वैतप्रभां मह्यं विमलाभां सरस्वति! ।। २ ।।
जैनेन्द्र सिद्धांत कोश के रचयिता तथा संपादक श्री जिनेन्द्र वर्णी का जन्म १४ मई १९२२ को पानीपत के सुप्रसिद्ध विद्वान स्व. श्री जयभगवान् श्री जैन एडवोकेट के घर हुआ । केवल १८ वर्ष की आयु में क्षय रोग से ग्रस्त हो जाने के कारण आपका एक फेफड़ा निकाल दिया गया जिसके कारण आपका शरीर सदा के लिए क्षीण तथा रुग्ण हो गया. सन् १९४९ तक आपको धर्म के प्रति कोई विशेष रुचि नहीं थी । अगस्त १९४९ के पर्यूषण पर्व में अपने पिता श्री का प्रवचन सुनने से आपका ह्रदय अकस्मात् धर्म की ओर मुड गया । पानीपत के सुप्रसिद्ध विद्वान् तथा शांत-परिणामी स्व. प. रुपचन्दजी गार्गीय प्रेरणा से आपने शास्त्र-स्वाध्याय प्रारंभ की और १९५८ तक सकल जैन-वाड्मय पढ डाला। जो कुछ पढते थे उसके सकल आवश्यक संदर्भ रजिस्ट्रों में लिखते जातॆ थे, जिससे आपके पास ४-५ रजिस्टर एकत्रित हो गए।
स्वाध्याय के फलस्वरुप आपके क्षयोपशम में अचिन्त्य विकास हुआ, जिसके कारण प्रथम बार का यह अध्ययन तथा सन्दर्भ-संकलन आपको अपर्याप्त प्रतीत होने लगा। अतः सन् १९५८ में दूसरी बार सकल शास्त्रों का आद्योपांत अध्ययन करना प्रारंभ कर दिया। घर छोड़कर मन्दिर के कमरे में अकेले रहने लगे। १२-१४ घण्टे प्रति दिन अध्ययन में रत रहने के कारण दूसरी बार वाली यह स्वाध्याय केवल १५-१६ महीने में पूरी हो गई। सन्दर्भों का संग्रह अबकी बार अपनी सुविधा की दृष्टि से रजिस्ट्रों में न करके खुले परचों पर किया और शीर्षकों तथा उपशीर्षको में विभाजित उन परचों को वर्णानुक्रम से सजाते रहे। सन् १९५९ में जब यह स्वाध्याय पूरी हुई तो परचों का यह विशाल ढेर आपके पास लगभग ४० किलो प्रमाण हो गया।
परचों के इस विशाल संग्रह को व्यवस्थित करने के लिए सन् १९५९ में आपने इसे एक सांगोपांग ग्रन्थके रुप में लिपिबद्ध करना प्रारंभ कर दिया, और १९६० में ’जैनेन्द्र सिद्धांत कोष’ के नाम से आठ मोटे-मोटे खण्डों की रचना आपने कर डाली, जिसका चित्र शान्ति-पथ प्रदर्शन के प्रथम तथा द्वितीय संस्करण मे अंकित हुआ दिखाई देता है।
स्व. प. रुपचन्दजी गार्गीय ने अप्रैल १९६० में ’जैनेन्द्र प्रमाण कोष’ की यह भारी लिपि, प्रकाशन की इच्छा से देहली ले जाकर, भारतीय ज्ञानपीठ के मन्त्री श्री लक्ष्मी चन्दजी को दिखाई। उससे प्रभावित होकर उन्होने तुरंत उसे प्रकाशन के लिए मांगा। परंतु क्योंकि यह कृति वर्णीजी ने प्रकाशन की दृष्टि से नहीं लिखी थी और इसमें बहुत सारी कमिया थी, इसलिए उन्होने इसी हालत में इसे देना स्वीकार नहीं किया,और पण्डितजी के आग्रह से वे अनेक संशोधनों तथा परिवर्धनों से युक्त करके इसका रुपांतरण करने लगे। परंतु अपनी ध्यान समाधि की शान्त साधना में विघ्न समझकर मार्च १९६२ में आपने इस काम की बीच में ही छोड़कर स्थगित कर दिया।
पण्डितजी की प्रेरणायें बराबर चलती रही और सन् १९६४ में आपको पुनः यह काम अपने हाथ में लेना पड़ा। पहले वाले रुपान्तरण से आप अब सन्तुष्ट नहीं थे, इसलिए इसका त्याग करके दूसरी बार पुनः उसका रुपांतरण करने लगे जिसमें अनेकों नये शब्दों तथा विषयों की वृद्धि के साथ-साथ सम्पादन विधि में भी परिवर्तन किया। जैनेन्द्र प्रमाण कोष का यह द्वितीय रुपान्तरण ही आज ’जैनेन्द्र सिद्धांत कोष’ के नाम से प्रसिद्ध है।
अप्राप्त शब्द
जो शब्द कोष में उपलब्ध हैं, परन्तु इस विकी पर उपलब्ध नहीं हैं उनकी यह सूची है | कृपया आपको जो शब्द अप्राप्त मिलते हैं, उन्हें यहाँ जोड़ें ताकि उन्हें डाला जा सके |
मनःपर्यय
ईहा
अंतराय (vol. 1, p. 27) - Added
गणितज्ञ से गुण तक ४४ शब्द (Vol. 2, pg. 234-239)
ज्ञानसार (vol 2, pg. 270)
अधूरे शब्द
जिन शब्दों की जानकारी पूर्ण रूप से इस विकी पर उपलब्ध नहीं है, उनकी यह सूची है | कृपया आपको जो शब्द अधूरे मिलते हैं, उन्हें यहाँ जोड़ें ताकि उन्हें पूर्ण किया जा सके |