आचारवत्त्व: Difference between revisions
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<p> <span class="GRef">भगवती आराधना / विजयोदयी टीका / गाथा 419/608</span> <p class=" PrakritText ">आयारं पंचविहं पंचप्रकारं आचारं। चरदि विनातिचारं चरति। परं वा निरतिचारे पंचविधे आचारे प्रवर्तयति। उवदिसदि य आयारं उपदिसदि च आयारं उपदिशति च आचारं। एसो णाम एष आचारवान्नाम।</p> | |||
<span class="GRef">भगवती आराधना / मूल या टीका गाथा 420</span> <p class=" PrakritText ">दसविहठिदिकप्पे वा हवेज्ज जो सुट्ठिदो सयायरिओ। आयारवं खु एसो पवयणमादासु आउत्तो ॥420॥</p> | |||
<p class="HindiText">= जो मुनि पाँच प्रकार का आचार अतिचार रहित स्वयं पालता है, और इन पाँच आचारों में दूसरों को भी प्रवृत्त करता है, जो आचार का शिष्यों को भी उपदेश करता है, वह आचारवत्त्व गुण का धारक समझना चाहिए। जो दस प्रकार के स्थिति कल्प में स्थिर है वह आचार्य आचारवत्त्व गुण का धारक समझना चाहिए। यह आचार्य तीन गुप्ति और समितियों का जिनको प्रवचनमाता कहते हैं धारक होता है।</p> | |||
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भगवती आराधना / विजयोदयी टीका / गाथा 419/608
आयारं पंचविहं पंचप्रकारं आचारं। चरदि विनातिचारं चरति। परं वा निरतिचारे पंचविधे आचारे प्रवर्तयति। उवदिसदि य आयारं उपदिसदि च आयारं उपदिशति च आचारं। एसो णाम एष आचारवान्नाम।
भगवती आराधना / मूल या टीका गाथा 420
दसविहठिदिकप्पे वा हवेज्ज जो सुट्ठिदो सयायरिओ। आयारवं खु एसो पवयणमादासु आउत्तो ॥420॥
= जो मुनि पाँच प्रकार का आचार अतिचार रहित स्वयं पालता है, और इन पाँच आचारों में दूसरों को भी प्रवृत्त करता है, जो आचार का शिष्यों को भी उपदेश करता है, वह आचारवत्त्व गुण का धारक समझना चाहिए। जो दस प्रकार के स्थिति कल्प में स्थिर है वह आचार्य आचारवत्त्व गुण का धारक समझना चाहिए। यह आचार्य तीन गुप्ति और समितियों का जिनको प्रवचनमाता कहते हैं धारक होता है।