आजीव: Difference between revisions
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<p class="HindiText"><b>1. आहार का एक दोष</b></p> | |||
<span class="GRef">मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 450 </span><p class="PrakritText">जादी कुलं च सिप्पं तवकम्मं ईसरत्त आजीवं। तेहिं पुण उप्पादो आजीव दोसो हवदि एसो ॥450॥ </p> | |||
<p class="HindiText"> आजीव दोष - जाति, कुल, चात्रादि शिल्प तपश्चरण की क्रिया आदि द्वारा अपने को महान् प्रगट करने रूप वचन गृहस्थों को कहकर आहार लेना '''आजीव दोष''' है। इसमें बलहीनपना व दीनपना का दोष आता है ॥450॥ <br> | |||
<p class="HindiText"> देखें [[ आहार#4.1.1 | आहार - II.4.4]]। </p><br> | |||
<p class="HindiText"><b>2. वसतिका का एक दोष</b></p> | |||
<span class="GRef"> भगवती आराधना / विजयोदया टीका 230/444/6 </span><span class="SanskritText">उत्पादनदोषा निरूप्यंते -.... आत्मनो जातिं, कुलं, ऐश्वर्यं वाभिधाय स्वमाहात्म्यप्रकटनेनोत्पादिता वसतिराजीवशब्देनोच्यते ।..... ।</span> | |||
<p class="HindiText"> अपनी जाति, कुल, ऐश्वर्य वगैरह का वर्णन कर अपना माहत्म्य श्रावक को निवेदन कर वसतिका की प्राप्ति करना '''आजीव''' नामक दोष है।</p> | |||
<p class="HindiText"> - देखें [[ वसतिका#8.2 | वसतिका 8.2]]।</p> | |||
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Latest revision as of 19:25, 5 January 2023
1. आहार का एक दोष
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 450
जादी कुलं च सिप्पं तवकम्मं ईसरत्त आजीवं। तेहिं पुण उप्पादो आजीव दोसो हवदि एसो ॥450॥
आजीव दोष - जाति, कुल, चात्रादि शिल्प तपश्चरण की क्रिया आदि द्वारा अपने को महान् प्रगट करने रूप वचन गृहस्थों को कहकर आहार लेना आजीव दोष है। इसमें बलहीनपना व दीनपना का दोष आता है ॥450॥
देखें आहार - II.4.4।
2. वसतिका का एक दोष
भगवती आराधना / विजयोदया टीका 230/444/6 उत्पादनदोषा निरूप्यंते -.... आत्मनो जातिं, कुलं, ऐश्वर्यं वाभिधाय स्वमाहात्म्यप्रकटनेनोत्पादिता वसतिराजीवशब्देनोच्यते ।..... ।
अपनी जाति, कुल, ऐश्वर्य वगैरह का वर्णन कर अपना माहत्म्य श्रावक को निवेदन कर वसतिका की प्राप्ति करना आजीव नामक दोष है।
- देखें वसतिका 8.2।