अनुपालनाशुद्धप्रत्याख्यान: Difference between revisions
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<b> | <span class="GRef">मूलाचार/640-643</span><span class="PrakritGatha"> कदियम्मं उवचारिय विणओ तह णाण-दंसणचरित्ते । पंचविधविणयजुत्तं विणयसुद्धं हवदि तंतु ।640। अणुभासदि गुरुवयणं अक्खरपदवंजणं कमविसुद्धं घोसविसुद्धी सुद्धं एदं अणुभासणासुद्धं ।641। आदं के उवसग्गे समे य दुब्भिक्खवुत्ति कंतारे । जं पालिदं ण भग्गं एदं अणुपालणासुद्धं ।642। रागेण व दोसेण व मणपरिणामे ण दूसिदं जं तु । तं पुण पच्चाक्खाणं भावविशुद्धं तु णादव्वं ।643।</span> = | ||
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<li class="HindiText"> सिद्ध भक्ति आदि सहित कायोत्सर्ग तपरूप विनय, व्यवहार-विनय, ज्ञान-विनय, दर्शन व चारित्र-विनय- इस तरह पाँच प्रकार के विनय सहित प्रत्याख्यान वह विनयकर शुद्ध होता है ।640। </li> | |||
<li class="HindiText"> गुरु जैसा कहे उसी तरह प्रत्याख्यान के अक्षर, पद व व्यंजनों का उच्चारण करे, वह अक्षरादि क्रम से पढ़ना, शुद्ध गुरु लघु आदि उच्चारण शुद्ध होना वह अनुभाषणा शुद्ध है ।641। </li> | |||
<li class="HindiText"> रोग में, उपसर्ग में, भिक्षा की प्राप्ति के अभाव में, वन में प्रत्याख्यान पालन क्रिया भग्न न हो वह <b>अनुपालना शुद्ध</b> है ।642। </li> | |||
<li class="HindiText"> राग परिणाम से अथवा द्वेष परिणाम से मन के विकारकर जो प्रत्याख्यान दूषित न हो वह प्रत्याख्यान भावविशुद्ध है ।<br /> | |||
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<p class="HindiText"> देखें [[ प्रत्याख्यान ]]।</p> | |||
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Latest revision as of 16:57, 20 December 2022
मूलाचार/640-643 कदियम्मं उवचारिय विणओ तह णाण-दंसणचरित्ते । पंचविधविणयजुत्तं विणयसुद्धं हवदि तंतु ।640। अणुभासदि गुरुवयणं अक्खरपदवंजणं कमविसुद्धं घोसविसुद्धी सुद्धं एदं अणुभासणासुद्धं ।641। आदं के उवसग्गे समे य दुब्भिक्खवुत्ति कंतारे । जं पालिदं ण भग्गं एदं अणुपालणासुद्धं ।642। रागेण व दोसेण व मणपरिणामे ण दूसिदं जं तु । तं पुण पच्चाक्खाणं भावविशुद्धं तु णादव्वं ।643। =
- सिद्ध भक्ति आदि सहित कायोत्सर्ग तपरूप विनय, व्यवहार-विनय, ज्ञान-विनय, दर्शन व चारित्र-विनय- इस तरह पाँच प्रकार के विनय सहित प्रत्याख्यान वह विनयकर शुद्ध होता है ।640।
- गुरु जैसा कहे उसी तरह प्रत्याख्यान के अक्षर, पद व व्यंजनों का उच्चारण करे, वह अक्षरादि क्रम से पढ़ना, शुद्ध गुरु लघु आदि उच्चारण शुद्ध होना वह अनुभाषणा शुद्ध है ।641।
- रोग में, उपसर्ग में, भिक्षा की प्राप्ति के अभाव में, वन में प्रत्याख्यान पालन क्रिया भग्न न हो वह अनुपालना शुद्ध है ।642।
- राग परिणाम से अथवा द्वेष परिणाम से मन के विकारकर जो प्रत्याख्यान दूषित न हो वह प्रत्याख्यान भावविशुद्ध है ।
देखें प्रत्याख्यान ।