दर्शनपाहुड गाथा 20: Difference between revisions
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अब व्यवहार निश्चय के भेद से सम्यक्त्व को दो प्रकार का कहते हैं -<br> | अब व्यवहार निश्चय के भेद से सम्यक्त्व को दो प्रकार का कहते हैं -<br> | ||
जीवादीसद्दहणं सम्मत्तं जिणवरेहिं पण्णत्तं । ववहारा णिच्छयदो अप्पाणं हवइ सम्मत्तं ।।२०।।<br> | <p class="PrakritGatha"> | ||
जीवादीनां श्रद्धानं सम्यक्त्वं जिनवरै: प्रज्ञप्तम् । व्यवहारात् निश्चयत: आत्मैव भवति सम्यक्त्वम् ।।२०।।<br> | जीवादीसद्दहणं सम्मत्तं जिणवरेहिं पण्णत्तं ।<br> | ||
ववहारा णिच्छयदो अप्पाणं हवइ सम्मत्तं ।।२०।।<br> | |||
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<p class="SanskritGatha"> | |||
जीवादीनां श्रद्धानं सम्यक्त्वं जिनवरै: प्रज्ञप्तम् ।<br> | |||
व्यवहारात् निश्चयत: आत्मैव भवति सम्यक्त्वम् ।।२०।।<br> | |||
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<p class="HindiGatha"> | |||
जीवादि का श्रद्धान ही व्यवहार से सम्यक्त्व है ।<br> | |||
पर नियतनय से आत्म का श्रद्धान ही सम्यक्त्व है ।।२०।।<br> | |||
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<p><b> अर्थ - </b> जिन भगवान ने जीव आदि पदार्थो के श्रद्धान को व्यवहार सम्यक्त्व कहा है और अपने आत्मा के ही श्रद्धान को निश्चय सम्यक्त्व कहा है । </p> | <p><b> अर्थ - </b> जिन भगवान ने जीव आदि पदार्थो के श्रद्धान को व्यवहार सम्यक्त्व कहा है और अपने आत्मा के ही श्रद्धान को निश्चय सम्यक्त्व कहा है । </p> | ||
<p><b> भावार्थ -</b> तत्त्वार्थ का श्रद्धान व्यवहार से सम्यक्त्व है और अपने आत्मस्वरूप के अनुभव द्वारा उसकी श्रद्धा, प्रतीति, रुचि, आचरण सो निश्चय से सम्यक्त्व है, यह सम्यक्त्व आत्मा से भिन्न वस्तु नहीं है, आत्मा ही का परिणाम है सो आत्मा ही है । ऐसे सम्यक्त्व और आत्मा एक ही वस्तु है, यह निश्चय का आशय जानना ।।२०।।<br> | <p><b> भावार्थ -</b> तत्त्वार्थ का श्रद्धान व्यवहार से सम्यक्त्व है और अपने आत्मस्वरूप के अनुभव द्वारा उसकी श्रद्धा, प्रतीति, रुचि, आचरण सो निश्चय से सम्यक्त्व है, यह सम्यक्त्व आत्मा से भिन्न वस्तु नहीं है, आत्मा ही का परिणाम है सो आत्मा ही है । ऐसे सम्यक्त्व और आत्मा एक ही वस्तु है, यह निश्चय का आशय जानना ।।२०।।<br> |
Latest revision as of 04:55, 8 December 2008
अब व्यवहार निश्चय के भेद से सम्यक्त्व को दो प्रकार का कहते हैं -
जीवादीसद्दहणं सम्मत्तं जिणवरेहिं पण्णत्तं ।
ववहारा णिच्छयदो अप्पाणं हवइ सम्मत्तं ।।२०।।
जीवादीनां श्रद्धानं सम्यक्त्वं जिनवरै: प्रज्ञप्तम् ।
व्यवहारात् निश्चयत: आत्मैव भवति सम्यक्त्वम् ।।२०।।
जीवादि का श्रद्धान ही व्यवहार से सम्यक्त्व है ।
पर नियतनय से आत्म का श्रद्धान ही सम्यक्त्व है ।।२०।।
अर्थ - जिन भगवान ने जीव आदि पदार्थो के श्रद्धान को व्यवहार सम्यक्त्व कहा है और अपने आत्मा के ही श्रद्धान को निश्चय सम्यक्त्व कहा है ।
भावार्थ - तत्त्वार्थ का श्रद्धान व्यवहार से सम्यक्त्व है और अपने आत्मस्वरूप के अनुभव द्वारा उसकी श्रद्धा, प्रतीति, रुचि, आचरण सो निश्चय से सम्यक्त्व है, यह सम्यक्त्व आत्मा से भिन्न वस्तु नहीं है, आत्मा ही का परिणाम है सो आत्मा ही है । ऐसे सम्यक्त्व और आत्मा एक ही वस्तु है, यह निश्चय का आशय जानना ।।२०।।