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| <p> चम्पा नगरी के धनिक वैश्य सुबन्धु और उसकी पत्नी धनदेवी की कन्या इसका शरीर दुर्गन्धित था इसलिए यह इस नाम से प्रसिद्ध हुई । इसी नगर के निर्धन धनदेव के पुत्र जिनदेव के साथ इसका विवाह करना निश्चित हुआ । इधर जिनदेव इसके साध अपने विवाह की चर्चा सुनकर घर से निकल गया तथा उसने समाधिगुप्त मुनि से धर्मोपदेश सुनकर मुनि-व्रत धारण कर लिया । इसके पिता सुबन्धु ने जिनदेव के व्रती होने पर जिनदेव के भाई जिनदत्त से इसका विवाह किया किन्तु इसकी देह से उत्पन्न दुर्गन्ध को न सह सका और वह भी कहीं अन्यत्र चला गया । इसके पश्चात् माँ की शिक्षा के अनुसार इसने संयम धारण कर लिया । तीव्र तप तपती और परीषह सहती हुई यह विहार करने लगी । एक दिन इसने वसन्त-सेना नामक वेश्या को जार पुरुषों के साथ वन में देखकर प्रथम तो इसने वेश्या होने का निदान किया किन्तु बाद में इसने स्वयं को धिक्कारा और अपने संचित दुष्कर्मों के नाश की प्रार्थना की । आयु की समाप्ति पर प्राण त्याग कर यह अच्युत स्वर्ग में देवी हुई । पांडवपुराण 24.24-46, 64-71</p>
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