भावपाहुड गाथा 36: Difference between revisions
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(New page: आगे कहते हैं कि जीव ! उन रोगों का दु:ख तूने सहा -<br> <p class="PrakritGatha"> ते रोया वि य सयल...) |
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त्रिचत्वारिंशत् त्रीणि शतानि रज्जूनां लोकक्षेत्रपरिमाणं ।<br> | |||
मुक्त्वाsष्टौ प्रदेशान् यत्र न भ्रमित: जीव: ।।३६।।<br> | |||
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बिन आठ मध्यप्रदेश राजू तीन सौ चालीस त्रय ।<br> | |||
परिमाण के इस लोक में जन्मा-मरा न हो जहाँ ।।३६।।<br> | |||
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<p><b> अर्थ - </b> | <p><b> अर्थ - </b> यह लोक तीन सौ तेतालीस राजू परिमाण क्षेत्र है उनके बीच मेरु के नीचे गो स्तनाकार आठ प्रदेश हैं उनको छोड़कर अन्य प्रदेश ऐसा न रहा जिसमें यह जीव नहीं जन्मा मरा हो । </p> | ||
<p><b> भावार्थ -</b> | <p><b> भावार्थ -</b> `ढुरुढुल्लिओ' इसप्रकार प्राकृत में भ्रण अर्थ के धातु का आदेश है और क्षेत्र परावर्तन में मेरु के नीचे आठ प्रदेश लोक के मध्य में हैं, उनको जीव अपने शरीर के अष्टध्य प्रदेशों बनाकर मध्यदेश उपजै हैं वहाँ से क्षेत्रपरावर्तन का प्रारम्भ किया जाता है इसलिए उनको पुनरुक्त भ्रण में नहीं गिनते हैं ।।३६।। (देखो गो. जी. काण्ड गाथा ५६०, पृ. २६६ मूलाचार अ. ९ गा. १४, पृ. ४२८) </p> | ||
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Latest revision as of 10:20, 14 December 2008
आगे क्षेत्र को प्रधान कर कहते हैं -
तेयाला तिण्णि सया रज्जूणं लोयखेत्तपरिमाणं ।
मुत्तूणट्ठ पएसा जत्थ ण ढुरुढुल्लिओ जीवो ।।३६।।
त्रिचत्वारिंशत् त्रीणि शतानि रज्जूनां लोकक्षेत्रपरिमाणं ।
मुक्त्वाsष्टौ प्रदेशान् यत्र न भ्रमित: जीव: ।।३६।।
बिन आठ मध्यप्रदेश राजू तीन सौ चालीस त्रय ।
परिमाण के इस लोक में जन्मा-मरा न हो जहाँ ।।३६।।
अर्थ - यह लोक तीन सौ तेतालीस राजू परिमाण क्षेत्र है उनके बीच मेरु के नीचे गो स्तनाकार आठ प्रदेश हैं उनको छोड़कर अन्य प्रदेश ऐसा न रहा जिसमें यह जीव नहीं जन्मा मरा हो ।
भावार्थ - `ढुरुढुल्लिओ' इसप्रकार प्राकृत में भ्रण अर्थ के धातु का आदेश है और क्षेत्र परावर्तन में मेरु के नीचे आठ प्रदेश लोक के मध्य में हैं, उनको जीव अपने शरीर के अष्टध्य प्रदेशों बनाकर मध्यदेश उपजै हैं वहाँ से क्षेत्रपरावर्तन का प्रारम्भ किया जाता है इसलिए उनको पुनरुक्त भ्रण में नहीं गिनते हैं ।।३६।। (देखो गो. जी. काण्ड गाथा ५६०, पृ. २६६ मूलाचार अ. ९ गा. १४, पृ. ४२८)