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| <p> नन्दीश्वर द्वीप की चारों दिशाओं में विद्यमान वापिकाओ के कोणों के समीप स्थित पर्वत । ये एक-एक वापी के चार-चार होने से सोलह वापियों के चौसठ होते हैं । इनमें बत्तीस वापियों के भीतर और बाह्य कोणों पर स्थित है । ये स्वर्णमय ढोल के आकार मे होते हैं । ये ढाई सौ योजन गहरे एक हजार योजन ऊंचे, इतने ही चौड़े और इतने ही लम्बे तथा अविनाशी हैं । ये पर्वत देवों के द्वारा सेवित और एक-एक चैत्यालय से विभूषित है । इस तरह एक दिशा की चार वापियों के ये आठ और चारों दिशाओं के बत्तीस होते हैं । नन्दीश्वर द्वीप की चारों दिशाओं में चार अंजनगिरि, सोलह दधिमुख और बत्तीस रतिकरों के बावन चैत्यालय प्रसिद्ध है । हरिवंशपुराण 5.673-676 </p>
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| [[Category: पुराण-कोष]]
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| [[Category: र]]
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