भावपाहुड गाथा 67: Difference between revisions
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आगे | आगे कहते हैं कि यदि बाह्य नग्नपने से ही सिद्धि हो तो नग्न तो सब ही होते हैं -<br> | ||
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दव्वेण सयल णग्गा णारयतिरिया य सयलसंघाया ।<br> | |||
परिणामेण असुद्धा ण भावसवणत्तणं पत्ता ।।६७।।<br> | |||
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द्रव्येण सकला नग्ना: नारकतिर्यंच सकलसंघाता: ।<br> | |||
परिणामेन अशुद्ध: न भावश्रमणत्वं प्राप्ता: ।।६७।।<br> | |||
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द्रव्य से तो नग्न सब नर नारकी तिर्यंच हैं ।<br> | |||
पर भावशुद्धि के बिना श्रमणत्व को पाते नहीं ।।६७।।<br> | |||
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<p><b> अर्थ - </b> | <p><b> अर्थ - </b> द्रव्य से बाह्य में तो सब प्राणी नग्न होते हैं । नारकी जीव और तिर्यंच जीव तो निरन्तर वस्त्रादि से रहित नग्न ही रहते हैं । `सकलसंघात' कहने से अन्य मनुष्य आदि भी कारण पाकर नग्न होते हैं तो भी परिणामों से अशुद्ध हैं, इसलिए भावश्रमणपने को प्राप्त नहीं हुए । </p> | ||
<p><b> भावार्थ -</b> | <p><b> भावार्थ -</b> यदि नग्न रहने से ही मुनिलिंग हो तो नारकी तिर्यंच आदि सब जीवसमूह नग्न रहते हैं, वे सब ही मुनि ठहरे इसलिए मुनिपना तो भाव शुद्ध होने पर ही होता है । अशुद्ध भाव होने पर द्रव्य से नग्न भी हो तो भावमुनिपना नहीं पाता है ।।६७।।<br> | ||
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Latest revision as of 10:45, 14 December 2008
आगे कहते हैं कि यदि बाह्य नग्नपने से ही सिद्धि हो तो नग्न तो सब ही होते हैं -
दव्वेण सयल णग्गा णारयतिरिया य सयलसंघाया ।
परिणामेण असुद्धा ण भावसवणत्तणं पत्ता ।।६७।।
द्रव्येण सकला नग्ना: नारकतिर्यंच सकलसंघाता: ।
परिणामेन अशुद्ध: न भावश्रमणत्वं प्राप्ता: ।।६७।।
द्रव्य से तो नग्न सब नर नारकी तिर्यंच हैं ।
पर भावशुद्धि के बिना श्रमणत्व को पाते नहीं ।।६७।।
अर्थ - द्रव्य से बाह्य में तो सब प्राणी नग्न होते हैं । नारकी जीव और तिर्यंच जीव तो निरन्तर वस्त्रादि से रहित नग्न ही रहते हैं । `सकलसंघात' कहने से अन्य मनुष्य आदि भी कारण पाकर नग्न होते हैं तो भी परिणामों से अशुद्ध हैं, इसलिए भावश्रमणपने को प्राप्त नहीं हुए ।
भावार्थ - यदि नग्न रहने से ही मुनिलिंग हो तो नारकी तिर्यंच आदि सब जीवसमूह नग्न रहते हैं, वे सब ही मुनि ठहरे इसलिए मुनिपना तो भाव शुद्ध होने पर ही होता है । अशुद्ध भाव होने पर द्रव्य से नग्न भी हो तो भावमुनिपना नहीं पाता है ।।६७।।