भावपाहुड गाथा 75: Difference between revisions
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चक्कहररायलच्छी लब्भइ बोही सुभावेण ।।७५।।<br> | |||
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खचरामरमनुजकरांजलिमालाभिश्च संस्तुता विपुला ।<br> | |||
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सुभाव से ही प्राप्त करते बोधि अर चक्रेश पद ।<br> | |||
नर अमर विद्याधर नमें जिनको सदा कर जोड़कर ।।७५।।<br> | |||
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<p><b> अर्थ - </b> | <p><b> अर्थ - </b> सुभाव अर्थात् भले भाव से मंदकषायरूप विशुद्धभाव से चक्रवर्ती आदि राजाओं की विपुल अर्थात् बड़ी लक्ष्मी पाता है । कैसी है - खचर (विद्याधर), अमर (देव) और मनुज (मनुष्य) इसकी अंजुलिमाला (हाथों की अंजुलि) की पंक्ति से संस्तुत (नमस्कारपूर्वक स्तुति करने योग्य) है और यह केवल लक्ष्मी ही नहीं पाता है, किन्तु बोधि (रत्नत्रयात्मक मोक्षमार्ग) भी पाता है । </p> | ||
<p><b> भावार्थ -</b> | <p><b> भावार्थ -</b> विशुद्ध भावों का यह माहात्म्य है ।।७५।।<br> | ||
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Latest revision as of 10:51, 14 December 2008
आगे फिर भाव के फल का माहात्म्य कहते हैं -
खयरामरमणुयकरंजलिमालाहिं च संथुया विउला ।
चक्कहररायलच्छी लब्भइ बोही सुभावेण ।।७५।।
खचरामरमनुजकरांजलिमालाभिश्च संस्तुता विपुला ।
चक्रधरराजलक्ष्मी: लभ्यते बोधि: सुभावेन ।।७५।।
सुभाव से ही प्राप्त करते बोधि अर चक्रेश पद ।
नर अमर विद्याधर नमें जिनको सदा कर जोड़कर ।।७५।।
अर्थ - सुभाव अर्थात् भले भाव से मंदकषायरूप विशुद्धभाव से चक्रवर्ती आदि राजाओं की विपुल अर्थात् बड़ी लक्ष्मी पाता है । कैसी है - खचर (विद्याधर), अमर (देव) और मनुज (मनुष्य) इसकी अंजुलिमाला (हाथों की अंजुलि) की पंक्ति से संस्तुत (नमस्कारपूर्वक स्तुति करने योग्य) है और यह केवल लक्ष्मी ही नहीं पाता है, किन्तु बोधि (रत्नत्रयात्मक मोक्षमार्ग) भी पाता है ।
भावार्थ - विशुद्ध भावों का यह माहात्म्य है ।।७५।।