व्यवहारचारित्र: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
(5 intermediate revisions by 3 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> हिंसा आदि पाँचों पापों का कृत कारित और अनुमोदना से तीनों योगों की शुद्धिपूर्वक तीन गुप्ति और पंच समिति के परिपालन के साथ सदा के लिए त्याग करना व्यवहारचारित्र कहलाता है । वीरवर्द्धमान चरित्र 18.18-19</p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> हिंसा आदि पाँचों पापों का कृत कारित और अनुमोदना से तीनों योगों की शुद्धिपूर्वक तीन गुप्ति और पंच समिति के परिपालन के साथ सदा के लिए त्याग करना व्यवहारचारित्र कहलाता है । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.18-19 </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ | [[ व्यवहार सत्य | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ | [[ व्यवहारत्व गुण | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: व]] | [[Category: व]] | ||
[[Category: चरणानुयोग]] |
Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
हिंसा आदि पाँचों पापों का कृत कारित और अनुमोदना से तीनों योगों की शुद्धिपूर्वक तीन गुप्ति और पंच समिति के परिपालन के साथ सदा के लिए त्याग करना व्यवहारचारित्र कहलाता है । वीरवर्द्धमान चरित्र 18.18-19