भावपाहुड गाथा 156: Difference between revisions
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जीते जिन्होंने प्रबल दुर्द्धर अर अजेय कषाय भट ।<br> | |||
रे क्षमादम तलवार से वे धीर हैं वे वीर हैं ।।१५६।।<br> | |||
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<p><b> अर्थ - </b> | <p><b> अर्थ - </b> जिन पुरुषों ने क्षमा और इन्द्रियों का दमन, वह ही हुआ विस्फुरता अर्थात् सजाया हुआ मलिनतारहित उज्ज्वल खड्ग, उससे जिनको जीतना कठिन है ऐसे दुर्जय, प्रबल तथा बल से उद्धत कषायरूप सुभटों को जीते, वे ही धीरवीर सुभट हैं, अन्य संग्रामादिक में जीतनेवाले तो `कहने के सुभट' हैं । </p> | ||
<p><b> भावार्थ -</b> | <p><b> भावार्थ -</b> युद्ध में जीतनेवाले शूरवीर तो लोक में बहुत हैं, परन्तु कषायों को जीतनेवाले विरले हैं, वे मुनिप्रधान हैं और वे ही शूरवीरों में प्रधान है । जो सम्यग्दृष्टि होकर कषायों को जीतकर चारित्रवान् होते हैं वे मोक्ष पाते हैं, ऐसा आशय है ।।१५६।।<br> | ||
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Latest revision as of 11:56, 14 December 2008
आगे कहते हैं कि सम्यग्दृष्टि होकर जिनने कषायरूप सुभट जीते, वे ही धीरवीर हैं -
ते धीरवीरपुरिसा खमदमखग्गेण विप्फुरंतेण ।
दुज्जयपबलबलुद्धरकसायभड णिज्जिया जेहिं ।।१५६।।
ते धीरवीरपुरुषा: क्षमादमखड्गेण विस्फुरता ।
दुर्जयप्रबलबलोद्धतकषायभटा: निर्जिता यै: ।।१५६।।
जीते जिन्होंने प्रबल दुर्द्धर अर अजेय कषाय भट ।
रे क्षमादम तलवार से वे धीर हैं वे वीर हैं ।।१५६।।
अर्थ - जिन पुरुषों ने क्षमा और इन्द्रियों का दमन, वह ही हुआ विस्फुरता अर्थात् सजाया हुआ मलिनतारहित उज्ज्वल खड्ग, उससे जिनको जीतना कठिन है ऐसे दुर्जय, प्रबल तथा बल से उद्धत कषायरूप सुभटों को जीते, वे ही धीरवीर सुभट हैं, अन्य संग्रामादिक में जीतनेवाले तो `कहने के सुभट' हैं ।
भावार्थ - युद्ध में जीतनेवाले शूरवीर तो लोक में बहुत हैं, परन्तु कषायों को जीतनेवाले विरले हैं, वे मुनिप्रधान हैं और वे ही शूरवीरों में प्रधान है । जो सम्यग्दृष्टि होकर कषायों को जीतकर चारित्रवान् होते हैं वे मोक्ष पाते हैं, ऐसा आशय है ।।१५६।।