सिंधुद्बार: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
(6 intermediate revisions by 3 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> सिंधु नदी का द्वार । चक्रवर्ती भरतेश पश्चिम दिशा के समस्त राजाओं को वश में करते हुए वेदिका के किनारे-किनारे चलकर यहाँ आये थे । उन्होंने यहाँ के स्वामी प्रभास देव को अपने अधीन किया था । <span class="GRef"> महापुराण 68.653, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_11#15|हरिवंशपुराण - 11.15-16]] </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ | [[ सिंधुतटवन | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ | [[ सिंधुनद | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: स]] | [[Category: स]] | ||
[[Category: प्रथमानुयोग]] | |||
[[Category: करणानुयोग]] |
Latest revision as of 15:30, 27 November 2023
सिंधु नदी का द्वार । चक्रवर्ती भरतेश पश्चिम दिशा के समस्त राजाओं को वश में करते हुए वेदिका के किनारे-किनारे चलकर यहाँ आये थे । उन्होंने यहाँ के स्वामी प्रभास देव को अपने अधीन किया था । महापुराण 68.653, हरिवंशपुराण - 11.15-16